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२४ : जैन तत्त्वकालिका
सुन्दर (समचतुरस्र संस्थान वाली) होती है तथा उनके शरीर का गठन उत्तम कोटि का एवं सुदृढ़ (वज्रऋषभनाराच संहनन) होता है। यही कारण है कि अत्यन्त आत्मबली नरवीर तीर्थंकर घोर परीषहों और उपसर्गों को समभावपूर्वक सहन कर लेते हैं, कुटिल कर्मशत्रुओं, रागद्वषादि रिपुओं और कषायों के साथ युद्ध करके उन पर विजय प्राप्त कर लेते हैं, वे कठोर से कठोर साधना उत्साहपूर्वक करके आत्मशुद्धि कर सकते हैं।
इस प्रकार पुरुषों में सर्वोत्तमता धारण करने वाले होने से भगवान् पुरुषोत्तम हैं।
पुरुषसिंह-सिंह की तरह निर्भय और शूरवीर होकर पाषण्डियों को परास्त करते हुए स्वप्रतित मार्ग में प्रवृत्त होते हैं।
पुरुषवरपुण्डरीक-श्रीष्ठ पुण्डरीक कमल के समान कामरूपी कोचड़ और भोगरूप जल से अलिप्त रहकर महादिव्य यशः सौरभ में वे अनुपम हैं।
पुरुषवरगन्धहस्ति-वे पुरुषों में श्रेष्ठ गन्धहस्ती के समान परीषहों और उपसर्गों की परवाह न करते हुए मुक्तिपथ पर आगे बढ़ते ही जाते हैं। . लोकोत्तम-बाह्य (अष्टमहाप्रातिहार्य आदि) और आन्तरिक (अनन्तज्ञानादि) सम्पत्ति के कारण समग्र लोक में समस्त जीवों में उत्तम । :
लोकनाथ-कल्याणमार्ग का योग क्षेम करने से लोक के नाथ। लोकहितकर-उपदेश और प्रवृत्ति से समस्त लोक के हितकर्ता।
लोकप्रदीप-भव्यजीवों के हृदय-सदनस्थ मिथ्यात्वान्धकार को मिटाकर ज्ञानरूपी प्रकाश द्वारा सत्यासत्य प्रकाशक लोकदीपक। .. . लोकप्रद्योतकर-जन्म के समय तथा केवलज्ञान के बाद ज्ञानालोक द्वारा सूर्य के समान समस्त लोक के प्रकाशक । ... अभयदाता-सर्वजीवों को अभयदान देने वाले तथा सात प्रकार के भयों से मुक्त करने वाले।
चक्ष दाता-ज्ञानचक्षुओं पर बँधी हुए ज्ञानावरण रूपी पट्टी को हटाकर ज्ञानरूप चक्षु देने वाले।
मार्गदाता-अनादिकाल से मार्ग भूले हुए तथा संसाराटवी में फंसे हुए प्राणी को मोक्षमार्ग के प्रदर्शक ।
शरणदाता–चार गतियों के दुःखों से त्राण पाने हेतु शरण में आए हुए जीवों को ज्ञानरूप सुभट का शरण देने वाले। ... जीवनदाता-मोक्ष स्थान तक पहुँचाने के लिए संयमरूप जीवनदाता।
बोधिदाता-भव्य जीवों को बोधिलाभ देने वाले।