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________________ अरिहन्तदेव स्वरूप : १३ इस प्रकार अह' त् भगवान् के ३५ वचनातिशय हैं । अपायापगमातिशय समवायांग सूत्र में तीर्थंकरों के चौंतास अतिशयों का प्रतिपादन किया गया है, उनमें से अधिकांश अतिशय अपायापगमातिशय कोटि के हैं । वे चौतीस अतिशय इस प्रकार हैं १ चोत्तीसं बुद्धाइसेसा पण्णत्ता, तं जहा - ( १ ) अवट्ठिए केसमंसुरोमनहे, (२) निरामया निरुवलेवा गायलट्ठी, (३) गोक्खी रपंडुरे मंससोणिए, (४) पउमुप्पलगंधिए उत्सासनिस्सासे, (५) पच्छन्न आहारनीहारे अदिस्से मंसचक्खुणा, (६) आगासगयं चक्कं, (७) आगासगय छत्त, (८) आगासगयाओ सेयवरचामराओ (8) आगासफालियामयं सपायपीढं सीहासणं, (१०) आगासगओ कुडभी सहस्सपरिमंडियाभिरामो इंदज्झओ पुरओ गच्छइ, (११) जत्थ- जत्थ वि य णं अरहंता भगवंता चिट्ठति वा निसीयंति वा तत्थ तत्थ वि य णं तक्खणादेव ( जक्खा देवा) संछन्नपतपुप्फ-पल्लव- समाउलो सच्छत्तो सज्झओ सघंटो सपडागो असोगवरपायवे अभिसंजायइ; (१२) ईसि पिट्टओ मउडट्ठार्णामि तेयमंडलं अभिसंजायइ, अंधकारे वि य णं दसदिसाओ पभासेइ, (१३) बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे, (१४) अहोसिरा कंटया जायंति (भवति), (१५) उऊ विवरीया सुहफासा भवंति (१६) सीयलेणं समंतओ सुरभिणा मारुणं जोयणपरिमंडलं सव्वओ समंतओ संपमज्जिज्जइ, (१७) जुत्तफुसि - एण मेणयं निहयरय रेणूपंकिछइ; (१८) जलथलय भासुरपभूतेणं बिटट्ठाइणा दसद्धवण्णे णं कुसुमेणं जाणुस्सेहप्पमाणगमित्त पुप्फोवयरि किज्जइ (१६) अमणुण्णाणं सद्दफरिसरसरूवगंधाणं अवकरिसो भवइ, (२०) मणुण्णाणं सद्दफरिस रसरूव गंधाणं पाउ भावो भवइ; (२१) पच्चाहरओ वि य णं हिययगमणीओ जोयण हारीसरो, (२२) भगवं च णं अद्धमागहीए भासा धम्ममाइक्खइ, (२३) सावि य अद्धमागही भासा भासिज्जमाणी तेसि सव्वेसि आरियमणारियाणं दुप्पय- चउप्पयमिय-सु-पक्खि सरीसिवाणं अप्पणोहियसिव-सुहय भासत्ताए परिणमइ, (२४) पुव्वबद्ध वेरा वि य णं देवासुर-नाग सुवण्ण-जक्ख- रक्खस- किनर - किपुरिस गरुलगंधव महोरगा अरहओ पायमूले पसंतचित्तमाणसा धम्मं निसामंति, (२५) अण्णउत्-पावणिया वि य णमागया वंदति (२६) आगया समाणा अरहओ पायमूले निप्पडवणा हवंति, (२७) जओ जओ वि य णं अरहंतो भगवंतो विहरंति तओ ओ वि य णं जोयणपणवीसाएणं इत्ती न भवइ, (२८) मारी न भवइ, (२९) सचक्कं न भवइ, (३०) परचक्कं न भवइ, (३१) अडवुट्ठि न भवइ, (३२) अणावुट्ठि न भवइ, (३३) दुभिक्खं न भवइ, (३४) पुब्वप्पण्णा वि य णं उप्पाइया वाही खिप्पमिव उवसमंति । - समवायांगसूत्र, स्थान ३४ वाँ
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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