________________
अरिहन्तदेव स्वरूप :
स्वामी से पूछते हैं—'भयंकर गाढ़ अन्धकार में बहुत-से प्राणी रह रहे हैं। इस सम्पूर्ण लोक में प्राणियों के लिए कौन प्रकाश (ज्ञानोद्योत) करेगा?
गौतम स्वामी ने कहा-“सम्पूर्ण लोक में प्रकाश करने वाला निर्मल (ज्ञानरूपी) सूर्य उदित हो चुका है। वह सब प्राणियों के लिये प्रकाश करेगा।"
केशीकुमार श्रमण ने गौतम से पुनः पूछा-“आप सूर्य किसे कहते हैं ?"
गौतम स्वामी ने बताया-'जिसका संसार क्षीण हो चुका है, अर्थात्जिस आत्मा का संसार के जन्म-मरण से सम्बन्ध छूट गया है, जो सर्वज्ञ (सर्वदर्शी) हो गया है तथा (सर्वज्ञता के प्रतिबन्धक राग-द्वषादि शत्रुओं को जीतकर) जिन भास्कर रूप में उदित हो गया है। (वही अज्ञान एवं मिथ्यात्वरूपी अन्धकार से ग्रस्त) समग्र लोक के प्राणियों के लिए प्रकाश करेगा।
यह है अर्हन्त के ज्ञानातिशय का चमत्कार ! वचनातिशय
शास्त्रों में तीर्थंकरों को वाणी (सत्यवचन) के पैंतीस अतिशयों का वर्णन किया गया है।' वह क्रमशः इस प्रकार है
१ (क) 'पणतीसं सच्चवयणाइसेसा पण्णत्ता।' –समवायांग, सम० ३५, सू० ३५ (ख) संस्कारवत्त्वमौदात्यमुपचारपरीतता ।
मेघगम्भीरघोषत्वं प्रतिनादविधायिता ॥१। दक्षिणत्वमुपनीतरागत्वं च महार्थता । अव्याहतत्वं शिष्टत्वं , संशयानामसम्भवः ।।२॥ निराकृतान्योत्तरत्वं हृदयंगमताऽपि च ।। मिथः साकांक्षता प्रस्तावौचित्यं तत्त्वनिष्ठता ॥३॥ अप्रकीर्णप्रसृतत्वमस्वश्लाघान्यनिन्दिता । आभिजात्यमतिस्निग्धमधुरत्वं प्रशस्यता ॥४॥ अमर्मवेधितौदार्य-धर्मार्थप्रतिबद्ध ता । कारकाद्यविपर्यासो विभ्रमादि-वियुक्तता ।।५।। चित्रकृत्त्वमद्भुतत्त्वं तथाऽनति विलम्बिता । अनेकजातिवैचित्र्यमारोपितविशेषता ॥६॥ सत्त्वप्रधानता वर्ण-पद-वाक्यविविक्तता। अव्युच्छित्तिरिखेदित्त्वं पंचत्रिंशच्च वाग्गुणाः ॥७॥
- अभिधानचिन्तामणि कोष, देवाधिदेवकाण्ड