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________________ ४ : जैन तत्त्वकलिका एवं विश्ववत्सल होते हैं। धर्म का साक्षात् उपदेश वे ही देते हैं और धर्मतीर्थ की स्थापना करके मुक्ति-मार्ग का प्रवर्तन करते हैं। सिद्ध-परमात्मा अरूपी और अशरीरी होते हैं, वे मुक्ति में विराजमान होते हैं, जन्म-मरण से सर्वथ। रहित होते हैं । यद्यपि चरम लक्ष्य तो सिद्धत्व प्राप्त करना और मुक्त होना है, तथापि सबसे निकट उपकारी और धर्म के मुख्य उपदेष्टा एवं सत्य के साक्षात् द्रष्टा होने से अरिहन्त देव का सर्वप्रथम अवलम्बन लेना अनिवार्य है। इस कारण प्रथम अरिहन्तदेव को स्मरण और नमन किया जाता है तथा उनकी ही प्रथम आराधना-उपासना की जाती है। " अतएव हम पहले अरिहन्त परमात्मा के सर्वांगीण स्वरूप का वर्णन करके तत्पश्चात् सिद्ध परमात्मा का वर्णन करेंगे।
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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