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५० | विषय -सूची
काल गणना की तालिका २२७ [ ५ ] जीवास्तिकाय २२८, [७] पुद्गलास्तिकाय २२८, षद्रव्यों के नित्य- ध्र ुवगुण २२६, छहद्रव्यों का उपकारत्व निर्णय २२६, धर्म अधर्म और आकाश द्रव्य उपकार २३०, काल द्रव्य के उपकार २३१, पुद्गलास्तिकाय के उपकार २३१, पुद्गल के दसवध परिणाम २३३ [६] जीवद्रव्य के उपकार २३५. छह द्रव्यों का गुण पर्याय निर्णय २३६, सहभावी गुण और क्रमभावी गुण २३६, सहभावी गुणों के दो प्रकार - सामान्य और विशेष २३७, द्रव्यों के सामान्य सहभावी गुण २३७, सहभावी विशेष गुण २३७, छह द्रव्यों के गुणों में साधयं - वैधर्म्यं २३८. षद्रव्यों का चार गुणों की दृष्टि से विचार २३६, षड्द्रव्यों के नित्यानित्य गुण की चतुभंगी २४०, षड़द्रव्यों पर स्वद्रव्यादि चारों सम्बन्धी नित्यानित्य चतुर्भगी २४१, षड् द्रव्यों का परस्पर संबंध २४१, षड़ द्रव्यों के गुण- पर्यायों का साधर्म्य - वैधर्म्य २४२, षड् द्रव्यों के क्रम भाबी गुण - पर्याय २४२, परिणामवाद : द्रव्य लक्षण के संदर्भ में २४३, दस प्रकार के जीवपरिणाम २४४, दस प्रकार के अजीव परिणाम २४५, अस्तिकाय धर्म की उपयोगिता २४६ ॥ अष्टम कलिका १५. गृहस्थधर्म - स्वरूप ( चारित्रधर्म के सन्दर्भ में)
२४७-- २७४ २४७ – २७४
श्रेयस की साधना ही धर्म है २४७, श्रुतधर्म की अपेक्षा चारित्रधर्म का महत्त्व २४७, ज्ञान-दर्शन- चारित्र में एकरूपता न होने का कर्मवाद द्वारा समाधान २४६, चारित्र धर्म का स्वरूप २४६, चारित्र धर्म के दो रूप २५०, अगार चारित्र धर्म २५०, अगार चारित्र धर्म के दो रूप - ( १ ) सामान्य गृहस्थ धर्म और (२) विशेष गृहस्थ धर्म २५०, सामान्य गृहस्थ धर्म के सूत्र २५०, [१] न्याययुक्त आचरण २५०. .[२] न्यायोपार्जित धन २५१, [३] अन्यगोत्रीय समान कुल-शील वाले के साथ विवाह सम्बन्ध २५१, [४] उपद्रवयुक्त स्थान का त्याग २५१, [५] सुयोग्य व्यक्ति का आश्रय लेना २५३, [६] आयोचित व्यय २५३, [७] प्रसिद्ध देशाचार पालन २५३, [८] मातापिता की विनय २५३ [६] स्व-प्रकृति के अनुकूल समय पर भोजन २५३, [१०] अदेश-काल चर्यात्याग २५३, [११] वेग आदि छह का अतिक्रमण न करे २५३ (i) वेग ३५३, (ii) व्यायाम २५३, (iii) निद्रा २५३ [iv] स्नान २५४, (v) भोजन ३५४, (vi) स्वच्छन्द वृत्ति २५४ गृहस्थ का विशेष धर्म २५४ सम्यक्त्वः स्वरूप लक्षण और अतिचार तथा आगार २५५, श्रावकधर्म के पाँच अणुव्रत ३५५ १, स्थूल प्राणतिपातविरमण ३५६, [२] स्थूल मृषावाद विरमण