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________________ ४८ | विषय - सूची ११८, चिदात्मा ११८, जैनदर्शन के अनुसार आत्मा का स्वरुप ११६, बौद्धदर्शन में आत्मा का स्वरुप ११२, विभिन्न दर्शनों की आत्मा सम्बन्धी मान्यताएँ १२३ । ११. लोकवादः एक समीक्षा मुक्ति के साधक के लिए लोक का ज्ञान आवश्यक १२४, लोक क्या है ? १२५, चार प्रकार का लोक १२५ क्षेत्रलोक और काललोकं १२६, लोक- अलोक की सीमा १२६, लोक- अलोक का परिमाण १२७, लोक का संस्थान (आकार) १२८, लोक कितना बड़ा है ? १२८. ऊर्ध्व लोक - परिचय १२६, मध्यलोक का परिचय १३० कर्मभूमिका क्षेत्र १३१ अकर्मभूमिका क्षेत्र १९३, अन्तरद्वीप १३३, ज्योतिष्क देवलोक १३० अधोलोक परिचय १३३ अलोकाकाश १३५, काललोक १३५, विश्व : काल की दृष्टि से १३५, विश्व किसी के द्वारा निर्मित या अनिर्मित १३६, कर्तृत्ववादियों के मुख्य तर्क १३५, जैन दर्शन द्वारा इन तर्कों के अकाट्य उत्तर १३८, विश्वस्थिति के मूल सूत्र १४०, लोक की संस्थिति १४१, आस्तिक्य का आधार : लोकवाद १४२ । १९४-१४३ १२. कर्मवाद : एक मीमांसा .१४४ - १८१ कर्मवाद : आस्तिक्य की सुदृढ़ आधार शिला १४४, संसार की विविधताओं का कारण कर्म १४४, कर्मवाद एवं अन्यवाद १४.५, अदृष्टवाद १४५, प्रकृतिवाद १४६, बौद्ध दर्शन का चित्तगत वासनावाद १४६, भूतवाद १४६, पुरुषवाद १४६, कालादि ऐकान्तिक पंचकारणवाद १४७, जैन दर्शनसम्मत पंचकारण - समवायवाद १४६, कर्मवाद की उपयोगिता १५१ कर्म शब्द: विभिन्न अर्थों में १५४, मूर्तकर्मों का अमूर्त आत्मा के साथ बंध कैसे ? १५५ कर्म और आत्मा का संयोग कब से ? १५५, बलवान कौन कर्म या आत्मा ? १५७, कर्म के दो प्रकार १५८, कर्मों का कर्ता कौन, भोक्ता कौन ? : १६०, कर्मबन्ध के हेतु १५८, कर्म जीवाधीन या जीव कर्माधीन और प्रकार १६३, बन्ध के प्रकार १६३, कर्म की मूलप्रकृतियाँ और उनके कार्य १६३, घात्यकर्म १६४, ज्ञानावरणीय कर्म १६४, दर्शनावरणीय कर्म १६४, मोहनीय कर्म १६४, अन्तराय कर्म १६५, आघात् कर्म १६५, वेदनीय कर्म १६५, नामकर्म १६५, गोत्रकर्म १६५, आयुष्य कर्म १६५, आठों कर्मों का बन्ध कब १६६, कर्मबन्ध की प्रक्रिया और कारण १६६, बन्ध के नियम १६७, कर्मबन्ध कैसे, किस क्रम से ? १६७, आठ कर्मों के बन्ध के कारण १६७, •
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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