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________________ गृहस्थधर्म-स्वरूप | २६१ सुवर्ण, द्विपद-चतुष्पद, वाहन यान आदि परिग्रहभूत वस्तुओं की मर्यादा (सीमा) करता है । पांचवें अणुव्रत के धारक को अपना व्रत सुरक्षित रखने के लिए निम्नोक्त पांच अतिचारों' से बचना आवश्यक है (१) क्षेत्र वास्तुप्रमाणातिक्रम - क्षेत्र (खेत, बगीचे या जमीन ) एवं वास्तु मकान, दुकान, घर आदि का जितना परिमाण किया हो उसका उल्लंघन करना, अर्थात् — एक वस्तु की सीमा घटाकर दूसरी वस्तु की सीमा बढ़ाना, संख्या बढ़ना या अपनी मालिकी रखते हुए भी स्त्री आदि के नाम से कर देना | (२) हिरण्य - सुवर्ण- प्रमाणातिक्रम - घड़े हुए या बिना घड़े हुए चाँदी - सोने का जो भी परिमाण किया हो, उसका उल्लंघन इस अभिप्राय से करना कि यह है तो मेरा ही किन्तु परिमाण अधिक है, इसीलिए स्त्री- पुत्रों के नाम के से रख लूं तो क्या हर्ज है ? अथवा प्रमाण से उपरान्त सोना-चाँदी पुत्र जन्मोत्सव, पुत्री के विवाह तथा अन्य कार्यों के लिए रख लेना; इत्यादि विचार व्रत को दूषित करने वाले हैं । (३) धन-धान्यप्रमाणातिक्रम - धन ( सिक्के नोट आदि), और धान्य ( अनाज आदि) का जो परिमाण किया हो, उसका अतिक्रमण करना व्रतदोष है | अधिक धन हो जाने पर अपने सम्बन्धी के यहाँ इस अभिप्राय से रखवा देना कि मेरे पास तो है नहीं । परन्तु यह आत्म-वंचना है । इसी प्रकार धान्यादि दूसरे के नाम से खरीद कर अपने पास संग्रह करना । या अधिक धान्य दूसरे के यहाँ रखवा देना भी इस व्रत का अतिचार है । (४) द्विपद- चतुष्पदप्रमाणातिक्रम - द्विपद ( दास-दासी या अन्य स्त्रीपुरुष) एवं दो पैर वाले पक्षी जैसे तोता, मैना, कबूतर आदि एवं चतुष्पद (चार पैर वाले जानवर गाय, भैंस आदि) का जितना परिमाण किया हो, उसका अतिक्रमण करना । (५) कुप्यप्रमाणातिक्रम - घर की जितनी भी सामग्री ( बर्तन, पलंग, पट्टे, पंखे, फर्नीचर, अलमारी आदि) है, उनकी जो मर्यादा की हो, उसका १ तयाणंतरं च णं इच्छापरिमाणस्स समणोवास एणं पंच अइयारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा - खेतवत्थु माणाइक्कम्मे, हिरण्णसुवण्णपमाणाइक्कम्मे, दुपयचउप्पयपमाणाइक्कम्मे, धणधन्नपमाणाइक्कम्मे, कुवियपमाणाइक्कम्मे । - - उपासकदशांग अ० १
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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