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________________ २६० | जैन तत्त्वकलिका : अष्टम कलिका संस्कार से पूर्व ही किसी अन्य पुरुष के साथ हो गया है, तो उस सम्बन्ध को तुड़वा कर अपने साथ उसका सम्बन्ध जोड़ना जुड़वाना भी परविवाहकरण रूप अतिचार है, क्योंकि ऐसी स्त्री भी एक प्रकार से परस्त्री ही है । (५) कामभोग तीव्राभिलाषा - काम भोग सेवन को तीव्र लालसा रखना भी इस व्रत का अतिचार है । कामभोग का अर्थ है - पांचों इन्द्रियों के विषय - शब्द-रूप-रस- गन्ध-स्पर्श । इन विषयों की वृद्धि के लिए नाना प्रकार की भस्म, धातु आदि बलबद्धक औषधियों का सेवन करना, वाजी - करण करना, रातदिन समय - कुसमय कामभोग सेवन करना या कामक्रीड़ा करते रहना, कामभोग तीव्राभिलाषा नामक अतिचार है । चतुर्थव्रतधारक गृहस्थ को इन पांच अतिचारों से अवश्य बचना चाहिए | (५) इच्छा परिमाणव्रत - परिग्रहपरिमाणव्रत गृहस्थ परिग्रह का सर्वथा त्याग नहीं कर सकता; क्योंकि उसे अपने आपके और परिवार के भरण-पोषण तथा उनके शिक्षा संस्कार, विवाहादि ara लिए एवं घर-गृहस्थी चलाने के लिए आवश्यक धन, साधन आदि की जरूरत रहती है । अतः अपनी अनन्त इच्छाओं तथा परिग्रहभूत वस्तुओं पर अंकुश लगाना एवं सन्तोष धारण करना श्रावक के लिए आवश्यक है । अनाप-सनाप परिग्रह होगा तो वह अपनी धर्मसाधना नहीं कर सकेगा, न ही सुखी रह सकेगा और न व्रत को ही सुरक्षित रख सकेगा । अतः भगवान् ने श्रावक के लिए पाँचवाँ इच्छापरिमाण या परिग्रहपरिमाणव्रत आवश्यक बताया है । ' परिग्रह के दो भेद हैं- द्रव्यपरिग्रह और भावपरिग्रह । द्रव्यपरिग्रह धन-धन्यादिरूप है और भावपरिग्रह अन्तरंग मोहनीय कर्म की प्रकृतिरूप है जिसका बाह्यरूप इच्छा, आशा, तृष्णा, लोभ, लालसा, वासना आदि हैं । अतः बाह्य परिग्रह पर नियंत्रण के लिए परिग्रहपरिमाण है और आन्तरिक परिग्रह पर नियंत्रण के लिए 'इच्छापरिमाण' है । अतः इस व्रत में गृहस्थ सुखपूर्वक अपने तथा अपने पारिवारिक जीवन का निर्वाह हो सके, तथा परिवार, समाज, देश और धर्म के प्रति अपने कर्त्तव्यों को निभा सके, इस दृष्टि से सोचकर धन-धान्य, क्षेत्र-वास्तु, हिरण्य १ 'इच्छापरिमाणे ' - स्थानांग स्था० ५, उ०१
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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