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________________ गृहस्थधर्म-स्वरूप | २५६ काही त्याग है, अगर किसी स्त्री को विशेष लोभ देकर कुछ दिनों या कुछ समय के लिए अपनी स्त्री बनाकर रख लूँ तो क्या दोष है ? इस प्रकार का विचार करने और तदनुरूप साधन जुटाने तक अतिक्रम, व्यति क्रम और अतिचार है, किन्तु अगर उसके साथ समागम कर लिया तो अनाचार यानी व्रतभंग हो जाता है । इस अतिचार का एक और अर्थ भी कतिपय आचार्य करते हैं कि यदि किसी लड़की का लघु अवस्था में श्रावक के साथ विवाह हो गया हो, किन्तु जब तक उसकी योग्य अवस्था न हो जाए, तब तक उसके समागम का विचार करने आदि से व्रत कलंकित हो जाता है । (२) अपरिगृहीतागमन - जिसका विवाह संस्कार नहीं हुआ है, जैसेकुमारी कन्या, अनाथ कन्या या वेश्या आदि, ऐसी स्त्रियों के साथ गमन का इस दृष्टि से विचार करना कि मेरा तो केवल परस्त्री के साथ गमन का त्याग है, ये तो किसी की भी स्त्री नहीं हैं, इसलिए इनमें से किसी के साथ गमन करने में दोष ही क्या है ? ऐसा विचार करना 'अतिचार' है । कतिपय आचार्य इसका अर्थ यह भी करते हैं - यदि किसी कन्या के के साथ केवल मंगनो ( सगाई ) हो गई हो, किन्तु विधिवत् विवाह न हुआ हो, यदि उस कन्या का एकान्त स्थान में मिलन हो गया हो तो भावी स्त्री जानकर उसके साथ कामचेष्टा करना या समागम का विचार करना इस व्रत का अतिचार है । (३) अनंगक्रीड़ा - कामवासना के वशीभूत होकर परस्त्री के साथ कामजन्य उपहासादि चेष्टाएँ करना, काम जागृत करने की आशा से परस्त्री के शरीर के कामांगों का स्पर्श करना अथवा स्वस्त्री के साथ भी कामांग के सिवाय अन्य अंगों से मैथुन करना अथवा अप्राकृतिक मैथुन (हस्तमैथुन आदि) करना, अनंगक्रीड़ा नामक अतिचार है । (४) पर- विवाहकरण - इसके दो अर्थ किये जाते हैं - (१) अपने सम्बन्धियों को छोड़कर अन्य लोगों के पुत्र-पुत्रियों का विवाह सम्बन्ध पुण्यलाभ जानकर या लोभ के वशीभूत होकर कराने के लिए उद्यत रहना उक्त व्रत के लिए परविवाहकरण रूप अतिचार है । क्योंकि विवाह मैथुन प्रवृत्ति का प्रेरक है और मैथुन प्रवृत्ति कभी पुण्य लाभ का कारण नहीं हुआ करती । (२) अथवा यदि किसी कन्या का सम्बन्ध ( वाग्दान ) विवाह - १ देखिए - ' पर विवाह करणे' पर उपासकदशांगवृत्ति
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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