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________________ २४८ | जैन तत्त्वकलिका : अष्टम कलिका दोनों मोह से पैदा होते हैं ।' मोह के दो भेद हैं-दर्शनमोह और चारित्रमोह । दर्शनमोह तात्त्विक दृष्टि का विपर्यास है। सम्यग्दर्शन जब हो जाता है, तो संसारभ्रमण को जड़ हिल जाती है। ज्ञान (श्रतज्ञान) भी सम्यक हो जाता है। यद्यपि सम्यग्दर्शन (सम्यग्ज्ञानसहित) बहुत ही महत्त्वपूर्ण है, आध्यात्मिक उत्क्रान्ति का द्वार है। किन्तु आचार की दृष्टि से इसका उतना महत्त्व नहीं है, क्योंकि दर्शनमोह का क्षयोपशम होने पर भी चारित्रमोह का क्षयोपशम न होने से आचरण की शुद्धि नहीं हो पाती । फलतः राग-द्वेष तीव्र बनते हैं। रागद्वष से कर्म और कर्म से संसार-इस प्रकार यह चक्र सतत घूमता रहता है। सम्यग्दृष्टि के केवल निर्जरा होती है, संवर नहीं होता । इस निर्जरा . को हस्तिस्नान के समान बताया गया है। हाथी नहाता है, और तालाब से बाहर आकर धूल या मिट्टी उछालकर फिर अपने शरीर को गन्दा बना लेता है। उसी प्रकार अविरतसम्यग्दृष्टि इधर तपस्या या सम्यक्श्रुत के अभ्यास द्वारा प्राप्त सम्यग्ज्ञान से कमनिर्जरा करके आत्मा की शुद्धि करता है. उधर अविरति तथा सावध आचरण से फिर रागद्वषवश कर्मों का उपचय करके आत्मा को अशुद्ध बना लेता है । अतः यह धर्मसाधना की समग्र भूमिका नहीं है। धर्मसाधना की समग्रता रथ के दो चक्र के और अंध-पंगू के दृष्टान्त द्वारा समझाई गई है। जैसे-एक पहिए से रथ नहीं चलता, वैसे ही केवल विद्या (श्रुत या सम्यग्दर्शन) से साध्य प्राप्त नहीं हो सकता। विद्या अकेली पंगु है, क्रिया अकेली अन्धी है। साध्य तक पहुँचने के लिए पैर और आँख दोनों चाहिए। इसीलिए कहा है-ज्ञान-श्यिाभ्यां मोक्षः । निष्कर्ष यह है कि केवल श्रुतधर्म (सम्यग्ज्ञान और सम्यग्दर्शन) से ही धर्मसाधना परिपूर्ण नहीं होती, नये आते हुए कर्मों को रोकने (संवर) के लिए i १ कम्मं च मोहप्पभवं वयंति । -उत्तराध्ययन २८।३०, ३२१७ २ (क) हस्तिस्नानमिव क्रिया । -हितोपदेश (ख) ज्ञानं भारः क्रियां विना । -हितोपदेश ३ (क) संजोगसिद्धिइ फलं वयंति, न हु एगचक्केण रह पयाइ । अंधो य पंगु य वणे समिच्चा, ते संपउत्ता नगरं पविट्ठा ॥ (ख) हयं नाणं कियाहीणं, हया अन्नाणओ किया। पासंतो पंगुलो दड्ढो धावमाणो अ अंधओ ॥११५६॥ -विशेषा० भाष्यगत आवश्यक नियुक्ति
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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