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. अस्तिकायधर्म-स्वरूप | २४३ बुद्धि से घट एक पदार्थ माना जाता है । घट और पट का पुद्गलद्रव्य एक होने पर घट से पट पृथक् है, ऐसी प्रतीति पर्याय का लक्षण है, फिर जो पदार्थ संख्याबद्ध हों, तथा विभिन्न संस्थान वाले हों, वे सब पर्याय के कारण हैं । अतः जितने भी संस्थान हैं, वे सब पुद्गलद्रव्य की पर्याय के कारण उत्पन्न हैं। इसी प्रकार संयोग और विभाग, ये बुद्धिकृत भेद पुद्गलद्रव्य के पर्याय हैं।
षद्रव्यों के पर्याय इस प्रकार हैं धर्मास्तिकाय के चार पर्यायस्कन्ध, देश, प्रदेश और अगुरुलघु; अधर्मास्तिकाय के भी उक्त चारों पर्याय हैं, आकाशास्तिकाय के भी हैं । कालद्रव्य के चार पर्याय हैं--अतीत, अनागत, वर्तमान और अगुरुलघु । पुद्गलद्रव्य के चार पर्याय - वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शसहित अगुरुलघुपर्याय । जीवद्रव्य के पर्याय अव्याबाध, अगुरुलघु, अमूर्तिक, अनवगाह।
दूसरी तरह से विचार करें तो भी जीव द्रव्य है, उसकी नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य, देव ये पर्याय हैं ।
. इस प्रकार छही द्रव्यों का विभिन्न पहलुओं से गुण-पर्याय-निर्णय किया गया है। परिणामवाद : द्रव्यलक्षण के सन्दर्भ में - द्रव्य का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है-जो पदार्थ अपने विविध पर्यायोंअवस्थाओं और परिणामों के रूप में द्रवीभूत हो, अर्थात उन-उन परिणामों को प्राप्त किया है, करता है, करेगा । द्रव्य की यह परिभाषा, अवस्थात्मक है।' इसका फलितार्थ यह हुआ कि विभिन्न अवस्थाओं का उत्पाद और विनाश होते रहने पर भी जो ध्र व रहता है, वही द्रव्य है। इसीलिए द्रव्य का फलितार्थ जैनाचार्यों ने किया है—'उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्तं सत् । सत् द्रव्य लक्षणम् । अर्थात्-उत्पत्ति और विनाश के साथ ही जो ध्रुव रहता है, वह सत् है। सत् ही द्रव्य का लक्षण है।
सरल शब्दों में यों कहा जा सकता है कोई भी वस्तु एक ही अवस्था में नहीं रहती, न रहेगी, वह भिन्न-भिन्न अवस्थाओं (पर्यायों) में परिवर्तित होती है, किन्तु उस वस्तु का अस्तित्व कभी नष्ट नहीं होताउसके मौलिक रूप और शक्ति (गुण) का कभी नाश नहीं होता।
१ अद्रवत् द्रवति द्रोष्यति तांस्तान् पर्यायान् इतिद्रव्यम् । २ (क) उत्पाद, व्ययं, ध्रौव्य, इस त्रयात्मक स्थिति का नाम सत् है ।
(ख) तत्त्वार्थसूत्र ५।२६