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___अस्तिकायधर्म-स्वरूप | २४१ सादि-अनन्त पद वाला हो जाता है । अतएव जिन आकाश प्रदेशों पर जीव अवगाहित हुआ है, वे प्रदेश भी सादि-अनन्त हो जाते हैं । (५) भव्यजीव और पुद्गलों का सम्बन्ध अनादि-सान्त है, परन्तु पुद्गल द्रव्य के स्कन्ध सादिसान्त पद वाले होते हैं, पुद्गल द्रव्य में सादि-अनन्त भंग नहीं बनता । (६) काल द्रव्य में चारों गुण अनादि-अनन्त हैं। पर्याय की अपेक्षा अतीतकाल अनादि-सान्त है, किन्तु वर्तमानकाल सादि-सान्त है तथा अनागतकाल सादिअनन्त है। षद्रव्यों पर स्वद्रव्यादि चारों सम्बन्धी नित्यानित्य चतुभंगी
(१) जीवद्रव्य में स्वद्रव्यापेक्षया ज्ञानादि गुण अनादि-अनन्त हैं, स्वक्षेत्रापेक्षया जीव के असंख्यातप्रदेश सादि-सान्त हैं, स्वकालापेक्षया अगुरुलघुगुण अनादि-सान्त है, फिर अगुरुलघुगुण का उत्पन्न होना सादि सान्त है। स्वभावापेक्षया गुण-पर्याय अनादि अनन्त हैं । अगुरुलघु सादि सान्त है । (२) धर्मास्तिकाय में गतिसहायक-लक्षण (स्वद्रव्य) अनादि-अनन्त है । स्वक्षेत्रापेक्षयाअसंख्यात प्रदेश लोकप्रमाण सादि सान्त हैं। स्वकालापेक्षया अगुरुलघु अनादि अनन्त हैं, किन्तु उत्पाद-व्यय सादि-सान्त हैं। स्वभावापेक्षया अगुरुलघु अनादि-अनन्त है। स्कन्ध, देश, प्रदेश, अवगाहनभाव सादि-सान्त है। (३) इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के विषय में समझना चाहिए। (४) आकाशास्तिकाय में स्वद्रव्य-अवगाहनगुण अनादि-अनन्त है, स्वक्षेत्र से लोकालोकप्रमाण अनन्तप्रदेश अनादि-अनन्त है, स्वकाल से-अगुरुलघुगुण सर्वथा अनादि-अनन्त है। परन्तु पदार्थों की अपेक्षा उत्पाद-व्यय भाव सादि-सान्त है। स्वभावपेक्षया चार गुण, स्कन्ध, अगुरुलघु अनादि-अनन्त हैं। देश-प्रदेश सादिसान्त है। लोकाकाश का स्कन्ध सादि-सान्त है, जबकि अलोकाकाश का स्कन्ध सादिअनन्त है। (५) कालद्रव्य में स्वद्रव्य नव्य-प्राचीनादि वत्त नागण अनादिअनन्त है, स्वक्षेत्र-समय सादि-सान्त है, स्वकाल अनादि-अनन्त है और स्वभाव से चार गुण, अगरुलघु अनादि-अनन्त है। अतीतकाल अनादि-सान्त, वर्तमान काल सादि-सान्त, और अनागतकाल सादि-अनन्त है। (६) पुद्गल द्रव्य में स्वद्रव्य से गलन-मिलन धर्म अनादि-अनन्त है, स्वक्षेत्र से परमाणु पुद्गल सादि-सान्त है, स्वकाल से अगुरुलघुगुण अनादि-अनन्त है, स्वभाव से-चार गुण अनादि-अनन्त हैं। स्कन्ध, देश, प्रदेश, अवगाहना भाव सादि-सान्त है; और वर्णादि पर्याय चार सादि-सान्त है । षद्रव्यों का परस्पर सम्बन्ध
(१) अलोकाकाश में आकाश के सिवाय और कोई द्रव्य नहीं है,