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२४० | जैन तत्त्वकलिका : सप्तम कलिका
गतिसहायक गण है, अधर्मास्तिकाय का स्वद्रव्य स्थितिसहायक गण है, आकाशास्तिकाय का स्वद्रव्य अवगाहनगुण है, कालद्रव्य का स्वद्रव्य वर्तनालक्षण है, पुद्गलास्तिकाय का स्वद्रव्य मिलना-बिछड़ना स्वभाव है और जीवास्तिकाय का स्वद्रव्य ज्ञानादि चेतना लक्षण है। स्वक्षेत्र-स्वक्षेत्र का अर्थ है-द्रव्य के अपने-अपने प्रदेश। धर्म और अधर्मद्रव्य का स्वक्षेत्र असंख्यातप्रदेश परिमाण है । आकाश द्रव्य का स्वक्षेत्र अनन्तप्रदेश है। काल द्रव्य का स्वक्षेत्र समय है। पुद्गल द्रव्य का स्वक्षेत्र एक परमाण से लेकर अनन्त परमाणुपर्यन्त है । जीव द्रव्य का स्वक्षेत्र अनन्त जीव तथा प्रत्येक जीव के असंख्यात प्रदेश हैं। स्वकाल-अगुरुलघुपर्याय—सभी द्रव्यों में हैं, किन्तु स्वभावगुणपर्याय-सभी द्रव्यों में स्व-स्वभाव-गुण पर्याय सदैव विद्यमान रहता है। इस प्रकार पड्द्रव्य स्वगुण की अपेक्षा से सत्रूप प्रतिपादित किये गये हैं।
(४) वक्तव्य-अवक्तव्य-छह द्रव्यों में अनन्तगुण-पर्याय वक्तव्य (वचन से कथनीय-अभिलाप्य) हैं, और अनन्तगण-पर्याय ही अवक्तव्यरूप (वचन द्वारा अकथ्य) हैं । यद्यपि केवलज्ञानी भगवान् के सर्वभाव देखे हुए हैं, परन्तु वे द्रष्ट भावों का सिर्फ अनन्तवाँ भाग ही कह सकते हैं। इसीलिए षड्द्रव्यों में वक्तव्य-अवक्तव्य दोनों भाव सम्भव हैं। षड्ब्रव्यों के नित्यानित्यगुण की चतुर्भगी
नित्यानित्य की चतुभंगी इस प्रकार बनती है--(१) अनादि-अनन्त, (२) अनादि-सान्त, (३) सादि-अनन्त और (४) सादि-सान्त । अब इन चारों भंगों पर षड्द्रव्य का विचार किया जाता है
(१) जीव में ज्ञानादि गण अनादि-अनन्त हैं, भव्य आत्माओं के साथ कर्मों का सम्बन्ध अनादि-सान्त है, किन्तु जब भव्य जीव सम्पूर्ण कर्मक्षय करके मोक्षपद प्राप्त करते हैं, तब उनमें सादि-अनन्त भंग माना जाता है। चतुर्गतिक-जन्ममरणशील संसारी जीवों में सादि-सान्त भंग हो जाता है। जैसेमनुष्य मरकर देवयोनि में चला गया, तब देवयोनि की अपेक्षा मनुष्यभव सादिसान्त वाला हो गया।(२-३) धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय मेंचारों गुण अनादि अनन्त हैं, किन्तु इन दोनों में अनादि-सान्त भंग नहीं होता; स्कन्ध देश, प्रदेश
और अगुरुलघु, इनमें सादि-सान्त भंग बनता है । जीव में धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय के वे ही प्रदेश सादि-अनन्त समझने चाहिए। (४) आकाशास्तिकाय में स्वगण अनादि-अनन्त हैं, किन्तु अनादि-सान्त भंग इसमें नहीं बन सकता। इसमें देश, प्रदेश, अगरुलघुभाव सादि-सान्त हैं। सिद्धपद प्राप्त करने वाला जीव