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अस्तिकायधर्म - स्वरूप | २३७
सहभावी गुण दो प्रकार के हैं - सामान्य और विशेष । छहों द्रव्यों में जो समानरूप से रहते हैं, वे सामान्य गुण कहलाते हैं और जो अमुक-अमुक द्रव्यों में ही विशेषरूप से रहते हैं, वे विशेष गुण कहलाते हैं ।
द्रव्यों के सामान्य सहभावी गुण ६ माने गये हैं- (१) अस्तित्व, (२) वस्तुत्व, (३) द्रव्यत्व, (४) प्रमेयत्व, (५) प्रदेशवत्व और ( ६ ) अगुरुलघुत्व । इनका स्वरूप इस प्रकार है
(१) अस्तित्व - जिसके कारण द्रव्य में उत्पाद - व्यय - ध्रौव्य - ये तीनों क्रियाएँ होती रहती हैं, उसे अस्तित्व गुण कहते हैं ।
(२) वस्तुत्व - जिसके कारण द्रव्य कोई न कोई अर्थक्रिया अवश्य करता रहे, वह वस्तुत्व गुण है । जैसे-घड़ा जल धारण की क्रिया करता है; इसी प्रकार छही द्रव्य कोई न कोई अर्थक्रिया अवश्य करते हैं ।
(३) द्रव्यत्व - जिसके कारण द्रव्य एक जैसा न रहकर नई-नई अव - स्थाओं को धारण करता रहे, उसे द्रव्यत्व गुण कहते हैं। इसी गुण के प्रभाव से जीवद्रव्य नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव बनता है। पुद्गलद्रव्य स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणु का रूप धारण करता है । काल द्रव्य समय, आवलिका, घड़ी, पहर, दिन-रात आदि नामों से पुकारा जाता है । आकाश द्रव्य घटाकाश, मठाकाश, लोकाकाश, अलोकाकाश आदि रूपों में कल्पित होता है ।
(४) प्रमेयत्व – जिसके कारण द्रव्य ज्ञान द्वारा जाना जा सके, वह प्रमेयत्वगुण है । धर्मादि द्रव्यों का ज्ञान इसी गुण के सहारे में किया जाता है । (५) प्रदेशवत्व - जिसके कारण द्रव्यों के प्रदेशों का माप किया जा सके, वह प्रदेशवत्व गुण है । धर्म, अधर्म और जीव के असंख्य प्रदेश, आकाश के अनन्त प्रदेश और पुद्गल के संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेश इसी गुण से मापे गये हैं ।
(६) अगुरुलघुत्व - जो द्रव्य का कोई न कोई आकार बनाए रखे तथा उसके गुणों को बिखर कर अलग न होने दे उसे अगुरुलघुगुण कहते हैं । इसी गुण के कारण द्रव्य किसी न किसी आकार में रहता है और गुणों को द्रव्य के अन्दर संगठित रूप से रखता है ।
सहभावी विशेष गुण - सोलह प्रकार के हैं - ( १ ) गतिसहायकत्व, (२) स्थितिसहायकत्व, (३) अवगाहन सहायकत्व, (४) वर्त्तना, (धर्म, अधर्म, आकाश और कालद्रव्य के विशेष गुण) (५ से ६) वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, मूर्तित्व (पुद्गलद्रव्य के विशेष गुण) एवं ( १० से १४) ज्ञान, दर्शन वीर्य, सुख और