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________________ २३४ | जैन तत्वकलिका-सप्तम कलिका विस्रसा (मेघादि गर्जन की भाँति स्वाभाविक रूप) से । प्रायोगिक शब्द भी दो प्रकार का होता है-भाषात्मक, अभाषात्मक । भाषात्मक शब्द दो प्रकार के हैं-अक्षरकृत, अनक्षर कृत । अभाषात्मक शब्द चार प्रकार के हैंतत, वितत, घन और शुषिर । इसी प्रकार सचित्त, अचित्त और मिश्र ये तीन भेद भी शब्द के हैं। शब्द की गति बहत तेज होती है । अमुक संयोगों में शब्द सिर्फ एक समय में तिर्यक्लोक की अन्तिम सीमा तक पहुँच जाता है, और चार समय में समग्रलोक में व्याप्त हो जाता है। भाषावर्गणा (वाणो) के पुद्गल दूसरों को प्रतिबोध देने, शास्त्र की व्याख्या समझाने, सत्परामर्श देने, अपनी बात दूसरों को समझाने में बहुत ही उपकारक है। .. . (२) बन्ध-विभिन्न परमाणुओं का संश्लेष, संयोग, मिलना या बंधना बन्ध है। बन्ध दो या अधिक परमाणुओं, या स्कन्धों का, एक या एक से अधिक स्कन्धों के साथ होता है । बन्ध दो प्रकार का होता हैप्रायोगिक (प्रयत्न सापेक्ष) और वैनसिक (प्रयत्न निरपेक्ष) यथा-जीव और शरीर का या लकड़ी और लाख का बन्ध प्रायोगिक है तथा बिजली, मेघ, इन्द्रधनुष आदि का बन्ध वैस्रसिक है। यहाँ पौद्गलिक परिणाम के रूप में बन्ध का निरूपण है, अतः वे बन्ध अनादि-अनन्त न होकर सादि-सान्त हैं। इस दृष्टि से प्रायोगिक बन्ध दो प्रकार का है-अजीव विपयक (लाख आदि का) और जीवाजीव विषयक (कर्म और.जीव का)। यह दो प्रकार का हैकर्मबन्ध, नोकर्मबन्ध (औदारिकादि शरीरविषयक बन्ध)। वैस्रसिक बन्धअनादि है यथा-आकाश, धर्म और अधर्म द्रव्य का बन्ध । इस प्रकार बन्ध सांसरिक जीवों के लिए कथञ्चित् उपकारी भी है और अनुपकारी भी। (३) सौम्य-सूक्ष्मता या छोटापन है । यह दो प्रकार का है-अन्त्य और आपेक्षिक । परमाणु की सूक्ष्मता अन्त्य है और आँवला, बेर आदि की सूक्ष्मता आपेक्षिक है। (४) स्थौल्य-स्थूलता-मोटापन । यह भी सूक्ष्मता की तरह दो प्रकार का है। लोकव्यापी अचित्त महास्कन्ध का स्थौल्य अन्त्य है । तथा "बेर आँवले आदि का स्थौल्य आपेक्षिक है। ये दोनों पुद्गल-परिणाम भी ' जीव के लिए उपकारी है। (५) संस्थान-आकृति । इसके दो भेद हैं-इत्थंभूत (व्यवस्थित) आकृति, और अनित्थंभूत (अव्यवस्थित) आकृति । इत्थंभूत के ५ प्रकार हैं
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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