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२३० | जैन तत्त्वकलिका-सप्तम कलिका सार यह विश्व छह द्रव्यों का समुदाय है, इन छह द्रव्यों का परस्पर सह अस्तिव है-संघर्ष नहीं। क्योंकि ये छहों द्रव्य विश्व की व्यवस्था में किसी न किसी प्रकार से सहयोगी या उपयोगी बनते हैं। जैसे-धर्म-गत्युपकारक द्रव्य, अधर्म-स्थित्युपकारक द्रव्य, आकाश-अवगाहनदायक द्रव्य; कालवर्तना, परिणाम, क्रिया और परत्व-अपरत्व उपकारक द्रव्य; पुद्गल-शरीर, मन, वाणी, प्राण, श्वासोच्छवास आदि कार्यों में उपकारक-सहयोगी द्रव्य; और जीव-परस्पर एक दूसरे के कार्य में सहायक-उपकारक द्रव्य है ।
_ 'धर्म, अधर्म और आकाश, इन तीनों द्रव्यों से जीवों को क्या-क्या लाभ हैं ?' इस सम्बन्ध में भगवान महावीर और गौतम स्वामी के भगवती सूत्र में अंकित प्रश्नोत्तर इस तथ्य पर अच्छा प्रकाश डालते हैं।
गौतम-भगवन् ! धर्मास्तिकाय (गति सहायक द्रव्य) से जीवों को क्या लाभ होता है ?
भगवान् गौतम! धर्मास्तिकाय न होता तो गमनागमन कैसे होता? शब्दों की तरंगें कैसे फैलती ? आंखें कैसे खुलतीं? मानसिक, वाचिक और कायिक प्रवृत्तियाँ (क्रियाएँ) कैसे होती? यह विश्व अचल ही होता। ये और इस प्रकार के विश्व के जितने भी चलभाव हैं, वे सब धर्मास्तिकाय की सहायता से ही होते हैं । गति में सहायक होना धर्मास्तिकाय का लक्षण है।' ____ गौतम-भगवन् ! अधर्मास्तिकाय (स्थिति-सहायक द्रव्य) से जीवों को क्या लाभ होता है ? - भगवान्-गौतम! अधर्मास्तिकाय न होता तो सब प्रकार के स्थिर भाव कैसे होते ? जसे कि-एक जगह स्थिर होना, बैठना, सोना, मन को एकाग्र करना, मौन करना, शरीर को निश्चल करना, आँखों का निमेष (अपलक) होना आदि जीवों की स्थिर होने की क्रियाएँ अधर्मास्तिकाय से ही होती हैं । इसी प्रकार के अन्य जो भी स्थिर भाव हैं, वे सब अधर्मास्तिकाय की सहायता से होते हैं। स्थिति में सहायता करना अधर्मास्तिकाय का लक्षण है।
गौतम-भगवन् ! आकाशास्तिकाय द्रव्य से जीवों और अजीवों को क्या लाभ होता है।
भगवान्—गौतम! आकाश द्रव्य नहीं होता तो ये जीव कहाँ होते ? ये
१. धम्मस्थिकाए पवत्तन्ति । गइलक्खणे धम्मत्थिकाए। -भगवती० १३१४।४८१