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________________ अस्तिकायधर्म-स्वरूप | २२५ रहना होता है, उसका छोर होता है, किन्तु जिसे किसी पर रहना नहीं है, उस पर यह नियम लागू नहीं हो सकता। इसी प्रकार जो वस्तु देशव्यापी (क्षेत्र के किसी नियत भाग में व्याप्त) होती है, उसका छोर या अन्त होता है, परन्तु जो वस्तु सर्वव्यापी (सर्वक्षेत्र में व्याप्त) होती है, उसका छोर या अन्त नहीं होता। यदि उसका छोर या अन्त हो तो उसे सर्वव्यापी नहीं कहा जा सकता । सर्वव्यापी का अर्थ ही है, जिसमें अशेष-सर्व व्याप्त हो, कुछ भी शेष न रहे । अतः सर्व-व्यापी आकाश का अन्त या छोर नहीं माना जाता। आधुनिक विज्ञान भी आकाश को अनन्त मानता है। अतः आकाश को 'अनन्त' कहना यथार्थ है। लोकाकाश असंख्यात प्रदेशात्मक है और अलोकाकाश अनन्त प्रदेशात्मक है। यों सम्पूर्ण आकाश के अनन्त प्रदेश है। अनन्त में से असं. ख्यात को पृथक कर दें तो भी अनन्त ही शेष रहेंगे। क्योंकि परीतानन्त, युक्तानन्त, अनन्तानन्त, यों अनन्त तीन प्रकार का है तथा इन सब के प्रकार भी अनन्त हैं। . कहते हैं, आकाश अमूर्त-अरूपी है, उसकी कोई आकृति नहीं, साथ ही उसमें वर्ण, गन्ध, रस या स्पर्श नहीं है । यहाँ जिज्ञासा होती है कि यदि आकाश की कोई आकृति नहीं, तो वह गुम्बज जैसा गोलाकार क्यों दीखता है ? यदि.वह वर्णरहित है तो आसमानी रंग का क्यों दिखाई देता है ? सुबह या शाम को विविध मनोहर रंग वयों धारण करता है ?' __ इसका समाधान यह है कि मैदान में खड़े होकर आकाश को देखा जाए तो उसका आकार अद्ध गोलाकार-सा दिखाई देता है यह हमारी दर्शनक्रिया के कारण है । आकाश में एक प्रकार का वातावरण होता है, अर्थातउसमें हवा, रज आदि वस्तुएँ होती हैं, जिनके कारण ऐसी दर्शनक्रिया सम्भव होती है । सब ओर दष्टि-मर्यादा समान अन्तर वाली होती है, तब ऐसी दर्शनक्रिया होती है। यदि आंख को मध्य बिन्दु पर स्थापित करके ऊपर और तिरछी लकीरें खींची जाएँ तो कुल मिलाकर गुम्बज का आकार बन जाएगा। इसके अतिरिक्त दर्शनक्रिया का यह नियम है कि यदि वस्तु अतिदूर हो तो उसकी किरणें आँख तक पहुँचने में वक्राकार हो जाती हैं, इस कारण वह वस्त गोलाकार दिखाई देती है। सूर्य, चन्द्र, तारे आदि गोलाकार दिखाई देते हैं, इसका मुख्य कारण भी यही है । १. धम्मो अहम्मो आगासं दव्वं इक्किक्कमाहियं । अणंताणि य दवाणि कालो पुग्गल जंतवो ।। -उत्तरा०२८1८
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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