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________________ २२४ | जैन तत्त्वकलिका-सप्तम कलिका है कि धरती का कोई भी टुकड़ा ले लिया जाय तो वहाँ आकाश शेष रहेगा। एक दस फूट लम्बा, चौड़ा और गहरा गड्डा खोदा जाय तो उसमें क्या रहेगा ? यदि हवा रहने की शंका हो तो हवा भी यंत्रादि के प्रयोग से खींच ली जाय तो वहाँ केवल आकाश ही बाकी बचेगा । इसका अर्थ यह हुआ कि धरती का वह भाग आकाश पर ही रहा हुआ था। . शंका हो सकती है कि इतनी भारी भरकम पृथ्वी आकाश पर कैसे रह सकती है ? इसका समाधान यह है कि 'पृथ्वी घनोदधि (जमे हुए गाढ़ पानी) पर टिक सकती है, तथा घनोदधि धनवात पर टिक सकता है, और और घनवात तनुवात (पतली हवा) पर रह सकती है एवं वह तनुवात आकाश पर रह सकती है।' ऐसा शास्त्रीय नियम है और वस्तु का स्वभाव ही ऐसा सिद्ध होता है जिससे वह उस प्रकार से रहती है । अन्यथा, पैरों के नीचे की पृथ्वी आदि को कहाँ तक किसके आधार पर माना जाएगा? अतः यह सिद्ध हुआ कि पृथ्वी आकाश पर रही हुई होने से उसके नीचे भी आकाश व्याप्त है। इस दृष्टि से आकाश को सर्वव्यापी मानना ही उचित है। 'पृथ्वी आकाश पर स्थित है', यह तथ्य आधुनिक विज्ञान ने भी माना है। निश्चय दृष्टि से तो सभी द्रव्य स्वप्रतिष्ठित (अपने-अपने स्वरूप में स्थित) हैं, एक द्रव्य दूसरे द्रव्य में तात्त्विक दृष्टि से नहीं रहता। किन्तु व्यवहार दष्टि से धर्म आदि द्रव्यों का आधार आकाश ही है। आकाश के अतिरिक्त शेष सभी द्रव्य आधेय हैं । प्रश्न होता है-आकाश का आधार क्या है ? इसका उत्तर यही है कि आकाश का अन्य कोई आधार नहीं है, क्योंकि उससे बड़ा, उसके तुल्य परिमाण का अन्य कोई तत्त्व नहीं है । इस प्रकार व्यवहार और निश्चय दोनों दष्टियों से आकाश स्वप्रतिष्ठ है । आकाश को अन्य द्रव्यों का आधार इसलिए कहा गया है कि वह सब द्रव्यों से विशाल है। - कहा जाता है कि आकाश अनन्त है, चाहे जितनी दूर जाएँ, उसका ओर-छोर-अन्त नहीं आता । इस पर प्रश्न उठता है कि प्रत्येक वस्तुपुस्तक, मैदान, सरोवर, नदी आदि का ओर-छोर होता है, फिर आकाश का ओर-छोर क्यों नहीं ? इसका समाधान यह है कि जिस पदार्थ को किसी पर १. भगवती सूत्र
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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