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________________ अस्तिकायधर्म - स्वरूप | २०६ करने वाला पानी है, उसी प्रकार जड़ पदार्थों और जीवों की गति करने में सहायक द्रव्य धर्मास्तिकाय है तथा जिस प्रकार थके हुए पथिक को विश्राम देने में वृक्ष 'की छाया निमित्तभूत होती है, उसी प्रकार स्थिति (स्थिरता ) करने वाले — ठहरने वाले जीवों और जड़ पदार्थों को स्थिति में सहायक अधर्मास्तिकाय है । (३) आकाशास्तिकाय - भगवती सूत्र में आकाश का लक्षण इस प्रकार बताया गया है अवकाश या अवगाह देने वाला आकाश द्रव्य है । ' यहाँ प्रश्न हो सकता है कि दूध शक्कर को अपने अन्दर रहने का अवकाश (Space) देता है, तपा हुआ लोहे का गोला अग्नि को अपने अन्दर अवकाश देता है । अर्थात् - पुद्गलों में भी अवकाश देने का गुण है, तो उसे आकाश का ही विशेष लक्षण क्यों माना जाए ? इसका समाधान यह है कि पुद्गल हमारी स्थूल दृष्टि में भले ही ठोस मालूम होता हो, किन्तु लोहे जैसे ठोस प्रतीत होने वाले पुद्गल भी खोखले हैं; और जो खोखला भाग है, वही आकाश है । आकाश होने से ही दूध में शक्कर और लोहे के गोले में अग्नि का प्रवेश हो सकता है । वस्तुतः शक्कर या अग्नि को वहाँ आकाश ने ही अवकाश दिया है । दूसरे शब्दों में यों भी कह सकते हैं, जिसमें पदार्थों को आश्रयआधार देने का गुण हो, उसे आकाश कहते हैं; और आकाश के अनन्त प्रदेशों का जो अविभाज्य पिण्ड है, उसे 'आकाशास्तिकाय' कहते हैं । विश्व के सभी पदार्थ आकाश के आधार पर टिके हुए हैं । अवगाहन करने में प्रवृत्त जीवों और पुद्गलों के लिए जो आलम्बन बनता है, उसे आकाश कहते हैं । जिस प्रकार दूध से भरे हुए घड़े में शक्कर आदि पदार्थों को अवगाहन मिल जाता है उसी प्रकार प्रत्येक द्रव्य को अवकाश देने के लिए आकाश द्रव्य भाजन रूप हो जाता है । " अतः आकाश द्रव्य को सब द्रव्यों का भाजन रूप कहा है। जिस प्रकार एक कमरे में सहस्रों दीपकों का प्रकाश परस्पर मिलकर एकमेक होकर रहता है, उसी प्रकार आकाश में अनेक द्रव्य सम्मिलित होकर रहते हैं । (४) काल द्रव्य - काल वर्तनालक्षण वाला है । १. अवगाह्णलक्खणे णं आगासत्थिकाए । २. भायणं सव्वदव्वाणं नहं ओगाहलक्खणं । ३. वत्तणालक्खणो कालो । अर्थात् -- जो सदैव - भगवती, १३।४।४८ १ - उत्तराध्ययन २८ ह - उत्तराध्ययन २८ १०
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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