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विषय-सूची | ४१
के सिद्ध १००, विभिन्न अपेक्षाओं से सिद्धों की गणना १०२, पूर्व भवाश्रित सिद्ध १०३, क्षेत्राश्रित सिद्ध १०३, अवगाहनाश्रित सिद्ध .. १०३, देवतत्व कैमा, क्यों और कैसे माना जाए ? १०४, देवतत्त्व को मानने से लाभ १०४, वीतरागदेव के सान्निध्य से लाभ १०६, उपास्य परमात्मा की उपासना से लाभ १०६, ईश्वर कर्तृत्व या
आत्म-कर्तृत्व १०७, एक शंकाः एक समाधान १०८, आत्मा के तीन वर्गीकरण-बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा १०६, वीतरागदेव का ज्ञानादि प्रकाश ग्रहण करने की आवश्यकता ? १०६, ध्येय के अनुसार ध्याता ११०, देवस्वरूप चिन्तन से स्वरूप भान ११२, नामस्मरण से आध्यात्मिक विकास ११२, देवत्व को जगाने के लिए ११३, परम उपकारी वीतरागदेव के प्रति कृतज्ञता ११३, परमात्मवाद का सदुपयोग और दुरुपयोग ११४, परमात्मा की सर्वज्ञता से लाभ ११५, परमात्मा की उपासना का मानव-जीवन पर प्रभाव ११६, वीतराग भक्ति का सफल रहस्य ११८, वीतरागदेव की भाव पूजा क्यों और क्या १२०, देवत्व को प्राप्त करने वाला ही सच्चा देव १२२ । द्वितीय कलिका
१२३-२६४ ४. गुरु-स्वरूप
१२३-१९८ आचार्य देव का सर्वांगीण स्वरूप १२३, गुरु की महिमा १२३, गुरु धर्मदेव हैं १२४, गुरु शब्द का निर्वचन १२६, जैन दृष्टि से गुरु . का लक्षण १२७, सुगुरु के प्रति विनयः कल्याण परम्परा स्रोत १२८, गुरुतत्त्व में तीन पदों का समावेश १२६, आचार्य का सर्वांगीण स्वरूप १२६, पंचाचार प्रपालक ही धर्माचार्य १३०, आचार्य के ... छत्तीस गुण १३०, पंचेन्द्रियनिग्रह १३१, श्रोत्र न्द्रियनिग्रह,१३१,चक्षुरिन्द्रियनिग्रह १३१, नागेन्द्रियनिग्रह १३१ रसनेन्द्रियनिग्रह १३२, स्पर्शेन्द्रियनिग्रह नवविधब्रह्मचर्य गुप्तियों के धारक १३३, चतुर्विध कषाय विजयी १३५. (१) क्रोध कषाय १३६, (२) मान कषाय १३७, (३) माया कषाय १३८, (४) लोभ कषाय १३६, पाँच महाव्रतों से गुक्त १४० प्रथम-अहिंसा महाव्रत १४१, सर्वप्राणतिपातविरमण का अर्थ १४१, प्रथम महाव्रत की पाँच भावनाएँ १४२, (१) ईर्या समिति भावना १४२,(२) मनोगुप्ति भावना १४२, (३) एषणासमिति भावना १४२, (४) आदाननिक्षेपण समिति भावना १४२, (५) आलोकित पानभोजन-भावना १५२, द्वितीय-सत्य महाव्रत १४३, सत्य महाव्रत का स्वरूप १४३, द्वितीय महाव्रत की पाँच भावनाएँ १४३ (१) अनुवीचि भाषण १४३, (२) क्रोधवशभाषण वर्जन १४३,