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________________ १६८ | जैन तत्त्वकलिका : छठी कलिका मोक्ष प्राप्ति कब होती है ? काल, स्वभाव, नियति, पूर्वकृत कर्मक्षय और पुरुषार्थ, इन पांच कारणों का समवाय -सम्मिलन होने पर भव्य मनुष्य को मोक्ष प्राप्ति होती है । भव्य जीव काल (समय) आने पर ही मोक्ष पाते हैं । काल के साथ 'स्वभाव' की आवश्यकता है । यदि सिर्फ काल से ही मोक्ष मिल जाए तो अभव्य जीवों को भी मोक्ष मिल जाना चाहिए किन्तु नहीं मिलता, क्योंकि उनमें मुक्त होने का स्वभाव नहीं हैं । काल और स्वभाव के साथ नियति ( भवितव्यता) भी मोक्षप्राप्ति में परम कारण है, अन्यथा सारे भव्य जीव एक साथ मुक्त हो जाने चाहिए, किन्तु नहीं होते । जिन्हें काल, स्वभाव के साथ नियति का योग प्राप्त होता है, वे ही मुक्त होते हैं । काल, स्वभाव और नियति का योग होने पर भी अनुकूल पुरुषार्थ की आवश्यकता है । राजा श्रेणिक त्याग प्रत्याख्यानरूप पुरुषार्थ न कर सके, इस कारण मुक्त न हो सके । इन चारों का योग होने पर भी पूर्वकृत कर्मों का सर्वथा क्षय होना होना आवश्यक है । कुछ कर्म शेष रहने के कारण शालिभद्र मुनि मोक्ष नहीं पा सके । मोक्षप्राप्ति कहाँ से होती है। ? मोक्षप्राप्ति केवल मनुष्यगति से हो सकती है, देव, तिर्यञ्चे एवं नरकगति से नहीं । जितना बड़ा मनुष्यलोक है, उतना ही बड़ा मुक्तिस्थान सिद्धशिला है । यों तो ग्राम, नगर, पर्वत, नदी, समुद्र आदि किसी भी स्थान से मनुष्य मुक्त हो सकता है, वहाँ से सीधी आकाश श्रेणी द्वारा गमन करता हुआ सिद्धशिला के ऊपर लोकाग्रभाग में जाकर स्थित हो जाता है । मुक्तियोग्य क्षेत्र १५ हैं - पांच भरत, पांच ऐरावत और पांच महाविदेह | एक सिद्धावगाहना में अनन्त सिद्ध सिद्धशिला जैसे छोटे-से स्थान में जहाँ एक सिद्ध है, वहाँ अनन्त सिद्धों के प्रदेश परस्पर एक रूप होकर उसी प्रकार रहे हुए हैं; जिस प्रकार एक दीपक के प्रकाश में हजारों दीपकों का प्रकाश परस्पर एकरूप होकर रहता है । लेकिन एकरूप होते हुए भी जिस प्रकार प्रत्येक दीपक के प्रकाश का पृथक अस्तित्व भी रहता है, उसी प्रकार प्रत्येक सिद्ध जीव के आत्म प्रदेशों १ सन्मतितर्क प्रकरण, तृतीयकाण्ड, भा० ५, गा० ५३, पृ० ७१० २ प्रज्ञापना, पद २
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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