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________________ मोक्षवाद : कर्मों से सर्वथा मुक्ति | १६७ वाला तीर चलता है, तोर छूटते ही वह उसी लक्ष्य की दिशा में उतने ही वेगपूर्वक गति करता है, इसी प्रकार जब आत्मा तीनों योगों का सर्वथा निरोध करके शरीर से पृथक् होता है, तब वह शरीर से छूटते ही स्वाभाविक रूप से सीधा ऊर्ध्वगमन करता है। अतः यह सिद्ध हुआ कि कर्ममुक्त सिद्ध परमात्मा लोकाग्रभागपर्यन्त जाकर वहाँ सादि-अनन्तपद वाले होकर सिद्धशिला' पर विराजमान हो जाते हैं। मोक्षप्राप्ति किसको ? पहले बताया गया है कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और सम्यक्तप की जो आराधना करता है, वही संसार से मुक्ति पा सकता है। भगवद्गीता में बताया गया है कि जो मान-मोह से रहित है, आसक्ति दोष पर विजयी हो चुके हैं, सदा अध्यात्मभाव में स्थित हैं, कामनाओं से निवृत्त हैं और सुख-दुःखादि द्वन्द्वों से मुक्त हैं, मोहमुक्त हैं, वे ज्ञानी अव्ययपद-मोक्ष को प्राप्त होते हैं। . इसी लक्षण को जैनदर्शन में संक्षेप से कहा गया है कि जो समस्त कर्मों का सर्वथा क्षय करते हैं अथवा सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की यथार्थ साधना करते हैं, वे मोक्ष प्राप्त करते हैं, चाहे फिर वे किसी भी धर्म, जाति. लिंग, देश, वेष आदि के हों। इसी बात को लक्ष्य करके तीर्थसिद्ध आदि १५ प्रकार से सिद्ध-मुक्त होने का जैनागमों में उल्लेख हैं। मोक्षप्राप्ति के प्रथम चार दुर्लम अंग मोक्षप्राप्ति के लिए प्राथमिक चार दुर्लभ अंगों का होना आवश्यक है। वे चार परम अंग ये हैं-(१) सर्वप्रथम मनुष्यत्व, (२) फिर धर्मशास्त्रों का श्रवण, (३) देव, गुरु, धर्म, और शास्त्र पर श्रद्धा और (४) अहिंसा, सत्य आदि संयम और तप आदि धर्माचरण में पराक्रम-अभ्यास । १ सिद्धशिला का वर्णन 'सिद्ध भगवान्' के वर्णन में कर चुके हैं। -सं० २ निर्मानमोहा जितसंगदोषा अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः । द्वन्द्व विमुक्ताः सुखदुःख संजर्गच्छन्त्यमूढा पदमव्ययं तत् । -भगवद्गीता अ० १५१५ ३ तीर्थसिद्धा' आदि १५ प्रकार से सिद्ध होने का विस्तृत वर्णन सिद्धाधिकार में कर चुके हैं। -स०
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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