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मोक्षवाद : कर्मों से सर्वथा मुक्ति | १९३
आत्मा कर्मपुद्गलों से सर्वथा रहित स्वगुणों में विराजमान हैं, तब वे स्थितियुक्त कैसे हो सकते हैं । कर्मबद्ध आत्माएँ ही स्थितियुक्त होतो हैं, सर्वथा कर्म- मुक्तात्माएँ नहीं । व्यवहार में भी देखा जाता है कि जो व्यक्ति दुष्कर्मों के कारण कारागृह में जाते हैं, उनकी तो स्थिति सजा की अवधि बांधी जाती है, किन्तु जब कोई कारावास की सजा की अवधि पूरी हो जाने के पश्चात् मुक्त कर दिया जाता है, तब फिर उसके लिए राजकीय पत्र ( गजट ) में ऐसा नहीं लिखा जाता कि अमुक व्यक्ति को कारागृह से मुक्त किया गया, उसे अमुक समय बाद पुनः कारागृह में डाला जाएगा । अतः मुक्तात्मा का पुनः संसार में आगमन युक्तिसंगत नहीं है ।
उपनिषद् गीता आदि ग्रन्थों में भी इसी अपुनरागमन सिद्धान्त का समर्थन किया गया है ।
जो लोग मोक्ष का रहस्य नहीं समझते हैं, वे मोक्ष से वापस संसार में लौटने की युक्तिविरुद्ध बात कहते हैं । वास्तव में, ऐसे लोग स्वर्ग को ही . मोक्ष समझते हैं । ब्रह्मलोक, बैकुण्ठ, गोलोक आदि मोक्ष की कोटि में नहीं, स्वर्ग की कोटि में ही आ सकते हैं । कर्मकाण्डी मीमांसकों ने तथा ईसाई धर्म एवं इस्लामधर्म आदि के प्रवत्त कों स्वर्ग, Heaven, जन्नत आदि को ही विकास की अन्तिम मंजिल माना ।
.मुक्ति से पुनरागमन के पक्षधर एक और विचित्र तर्क देते हैं कि यदि मुक्त आत्माएँ पुनः संसार में लौटकर नहीं आएँगी तो संसार खाली हो जाएगा, संसार में जीवों का अस्तित्व ही नहीं रहेगा, क्योंकि संसार से इतने जीव मुक्ति में चले जाएँगे, अर्थात्(- उनका व्यय हो जाएगा, तब यों व्यय होते-होते एक दिन संसार से जीवों का सर्वथा व्यय ( रिक्त) हो जाएगा ।
किन्तु उनका यह तर्क निर्मूल है। आत्मा (जीव) अनन्त हैं । जो अनन्त है, उसका कदापि अन्त नहीं आ सकता । यदि अनन्त का भी अन्त माना जाएगा, तब तो उसे अनन्त कहना ही निरर्थक है ।
ईश्वरत्ववादियों की मान्यता है कि ईश्वर ने अनन्त बार सृष्टि का उत्पादन किया, अनन्त बार सृष्टि का प्रलय किया तथा भविष्य में भी वह अनन्त बार सृष्टि रचना करेगा और अनन्त बार सृष्टि का प्रलय भी करेगा ।
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(क) 'न म पुनरावर्तते, न पुनरावर्तते ।'
(ख) यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ।
- छान्दोग्योपनिषद्
- भगवद्गीता, अ० ८ श्लो० २१