________________
विषय-सूची
प्रथम कलिका
१-१२२ १. मंगलाचरण
धर्मसंघ के लिए तोन सुदृढ़ आलम्बन २,सम्यक्त्व के तीन मूलाधार २, तीनों तत्त्वों का स्वरूप जानना आवश्यक २, देवस्वरूप दिग्दर्शन ३,
देव का अर्थ ३, देव पद में समाविष्ट अरिहन्त और सिद्ध ३। २. अरिहन्तदेव-स्वरूप
अर्हन् शब्द का विशेषार्थ ६, चार अतिशय ७, पूजातिशय ७, अष्ट महाप्रातिहार्य ७, ज्ञानातिशय ८, वचनातिशय ६, वचनातिशय के • ३५ प्रकार १०, अपायापगमातिशय १३, चौंतीस प्रकार के अपायापग मातिशय १३, अरिहन्त का स्वरूप १६, अरिहन्त और तीर्थं कर की भूमिका में अन्तर १७. 'जिन' शब्द का रहस्य १८, तीर्थकर का स्वरूप २१, तीर्थ शब्द की महिमा २२ , तीर्थंकरदेव के अनेक विशेषण २२, शक्रस्तव के अनुसार तीर्थंकरों के विशेषण २३, अभिधान चिन्तामणि में उल्लिखित तीर्थंकरों के विशेषण २५, पक्तामरस्तोत्र में उल्लिखित तीर्थंकर के गुणवाची अनेक शब्द २६. अरिहन्तों (तीर्थकरों) के मुख्य बारह गुण २६, तीर्थंकरों का लक्षण : अष्टादश दोष रहितता ७, अठारह दोष रहितता एवं उन दोषों का विवरण २६, तीर्थंकर-पद-प्राप्ति के बीस स्थानक (कारण) ३४, बीस स्थानकों का विस्तृत वर्णन ३५, तीर्थंकर और अवतार में अन्तर ४८, तीर्थंकर देवों की कुछ विशेषताएँ ४६, माता को उनम स्वप्न दर्शन ४६, जन्म महोत्सव ४६, तीर्थंकरों को जन्म से प्राप्त होने वाली चार विशेषताएँ ५१, बाल्य एवं युवावस्था ५१, वर्षीदान ५१, चतुर्थ ज्ञान (मनःपर्यवज्ञान) की प्राप्ति ५२, उत्कष्ट तपःसाधना ५२,, अर्हत्पद-प्राप्ति का क्रम ५३, तीर्थंकर के जीवन के महत्त्वपूर्ण पंचकल्याणक ५४, वर्तमान काल के चौबीस तीर्थंकरों के पंचकल्याणकों की तालिका ५५, तीर्थंकर कब-कब और कहां-कहाँ होते हैं ५२, भरतक्षेत्र की वर्तमान कालीन चौबीसी (चौबीस तीर्थंकरों) का संक्षिप्त परिचय ५८. [१] श्री ऋषभदेवजी