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मोक्षवाद : कर्मों से सर्वथा मुक्ति | १८३
सम्यक्त्व, व्रत, अप्रमाद, अकषाय और शुद्धोपयोग, ये पांच संवर है। इस प्रकार पंचास्रवों का निरोध करके पंचसंवर रूप साधना में जब साधक प्रवृत्त होता है, तब वह नवीन कर्मों का बन्ध नहीं करता, कर्मबन्ध की परम्परा को रोक देता है।
दूसरी ओर पूर्वबद्ध कर्मों का क्षय करने के लिए निर्जरा की साधना भी आवश्यक है। निर्जरा के लिए सबसे प्रधान साधन आत्मलक्ष्यी बाह्यआभ्यन्तर तप है । जिस प्रकार सोने पर लगे हुए मैल को दूर करने के लिए उसे अग्नि में तपाकर शुद्ध किया जाता है। वैसे ही तप की अग्नि द्वारा आत्मा पर लगे कर्ममल को जलाकर नष्ट किया जाता है। कहा भी हैतपःसाधना से करोड़ों भवों के संचित पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा (कर्मक्षय) को जाती है। मोक्ष-प्राप्ति के साधन
शास्त्र में तप के साथ-साथ सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र भी मोक्ष-प्राप्ति के साधन बताये गए है। परन्तु यहाँ निश्चय दृष्टि से पर-पदार्थों (भावों) में आसक्त न होने, तथा परभावों में जाने से आत्मा को रोकने का नाम सम्यकतप है, जिसमें ज्ञान-दर्शन और चारित्र का भी अन्तर्भाव हो जाता है । अतः यहाँ पूर्वबद्ध कर्मों को क्षय करने के लिए तप को ही ग्रहण किया गया है। तपस्या के भेद और ध्यान साधना
तप के दो प्रकार हैं, बाह्य और आभ्यन्तर । बाह्य तप के अनशन आदि ६ भेद हैं, इसी प्रकार आभ्यन्तर तप के भी प्रायश्चित्त, विनय, वयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग ये भेद ६ हैं। इन सबके विषय में हम पहले विवेचन कर चुके हैं। यहाँ ध्यान के विषय में कुछ प्रकाश डाला जाएगा; क्योंकि ध्यान से चित्त एकाग्र होता है और एकाग्रचित्त होने से तथा आत्मा के परभावों से निवृत्त एवं अनासक्त होने से कर्मों की निर्जरा शीध्र की जा सकती है। ध्यान के भेद-प्रभेद
__ शास्त्रकारों ने चार प्रकार का ध्यान बतलाया है-(१) आर्तध्यान, (२) रौद्रध्यान, (३) धर्मध्यान और (४) शुक्लध्यान । भवकोडिसंचियं कम्म तवसा निज्जरिज्जई ।
-उत्तरा० ३०।६ २ नाणण जाणई भावे दंसणेण य सद्दहं । चरित्तेण निगिण्हाइ तवेण परिसुज्झइ :
-उत्तरा० २८।३५