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________________ मोक्षवाद : कर्मों से सर्वथा मुक्ति आत्मवाद आदि का लक्ष्य : मोक्ष प्राप्ति कर्मवाद को मानने का फल यह नहीं कि व्यक्ति इसको जानकर हो रह जाय और कर्मों के जाल में ही फँसा रहे अथवा शुभ कर्मों (पुण्य) से छुटकारा न पाए बल्कि कर्मविज्ञान को भलीभांति जानकर वह शुभ और अशुभ सभी प्रकार के कर्मों से सर्वथा मुक्त होने का प्रयत्न करे अथवा कर्मशास्त्र का सम्यक्ज्ञान होने पर वह कर्मों से मुक्त होने के लिए सम्यग्दर्शनयुक्त होकर सम्यक्चारित्र की आराधना करे । इसलिए आत्मवाद आदि चारों वादों का अन्तिम लक्ष्य मोक्षवाद है । पहले बताया जा चुका है कि जीव रत्नत्रय की साधना में सम्यक् पुरुषार्थ द्वारा एक दिन शुभ तथा अशुभ सभी कर्मों से सर्वथा मुक्त हो सकता है । इसी अवस्था को निर्वाण या मोक्ष कहते हैं । ' एक बार बँधे हुए कर्म का कभी न कभी तो क्षय होता ही है, पर उस कर्म का बन्धन पुनः सम्भव हो अथवा वैसा कोई कर्म अभी शेष हो, ऐसी स्थिति में यह नहीं कहा जा सकता कि कर्मों का आत्यन्तिक क्षय हो गया है । आत्यन्तिक क्षय का अर्थ है - पूर्वबद्ध कर्म अथवा नवीन कर्म के बाँधने की योग्यता का पूर्णतया अभाव । जब तक आस्रवद्वार खुला रहेगा, तब तक कर्म-प्रवाह भी आता रहेगा । जीव पूर्वबद्ध कर्मों का विपाक भोगकर आत्मप्रदेशों से अलग करता है, साथ ही नये कर्मों को भो राग-द्वेषवश बाँधता रहता है। यानी कर्मपरमाणुओं के विकर्षण के साथ-साथ दूसरे कर्मपरमाणुओं का आकर्षण होता रहता है । अतः बद्ध कर्मों से मुक्त होने के लिए सर्वप्रथम आस्रवों का निरोध करके नये आते हुए कर्मों को रोकना - संवर की साधना करना आवश्यक है । मिथ्यात्व अव्रत, प्रमाद, कषाय और योग, ये पांच आस्रव हैं और १ नाणं च दंसणं चेव चरितं च तवो तहा । एस मग्गुत्ति पण्णत्तो, जिणेहिं वरदं सिहि ॥ - उत्तरा० २८।२
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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