SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 488
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६४ | जैन तत्त्वकलिका : छठी कलिका जब कोई कर्म किया जाता है तो उस कर्म के परमाणु आठ भागों में विभक्त हो जाते हैं। जिस प्रकार मुह में भोजन का एक कौर डालने पर वह शरीरगत सप्त धातुओं में परिणत हो जाता है, उसी प्रकार एक कर्म के करने पर वह मूलप्रकृतियों या उनकी उत्तरप्रकृतियों के रूप में परिणत हो जाता है। इन आठ मूलप्रकृतियों में से चार मूलप्रकृतियाँ (कर्मपुद्गल वर्गणाएँ) घात्य या घातिक कहलाती हैं और चार अघात्य या अघातिक । घात्यधर्म वे कहलाते हैं; जो चेतना--आत्मगुण और आत्मशक्ति के आवरक, विकारक और प्रतिरोधक हैं। चार घात्यकर्म ये हैं-ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय। चेतना के दो रूप हैं-ज्ञान (जानना या वस्तुस्वरूप का विमर्श करना) और दर्शन (साक्षात् करना या वस्तु का स्वरूप ग्रहण करना) । ज्ञान और दर्शन के आवरक कर्म (कमपुद्गल) क्रमशः ज्ञानावरण और दर्शनावरण कहलाते हैं। आत्मा को विकृत बनाने वाले कर्म की संज्ञा मोहनीय है और आत्मशक्ति का प्रतिरोध करने वाला कर्म अन्तराय है । इन चारों घात्य कर्मों का लक्षण इस प्रकार है (१) ज्ञानावरणीयकर्म-शुद्ध आत्मा सर्वज्ञत्वगुण-युक्त है । परन्तु ज्ञानावरणीय कर्म आत्मा के सर्वज्ञत्वगुण को आवृत-अच्छादित कर देता है । संक्षेप में, जो आत्मा की ज्ञानशक्ति का निरोध करता है वह ज्ञानावरणीय कर्म है। (२) दर्शनावरणीयकम-सर्वज्ञत्वगुण की तरह शुद्ध आत्मा का सर्वदर्शित्व गुण भी है किन्तु दर्शनावरणीयकर्म आत्मा के उक्त गुण को आच्छादित कर देता है । संक्षेप में, जो आत्मा की दर्शनशक्ति को आच्छादित कर देता है, वह दर्शनावरणीय कर्म है। (३) मोहनीयकर्म-जिस कर्म के प्रभाव से आत्मा अपने सम्यग्भाव या स्व-स्वरूप को भूलकर केवल मिथ्या (विपरीत) भाव या परभाव में ही निमग्न रहे, उसे मोहनीय कर्म कहते हैं। मदिरा पीकर उन्मत्त बना हुआ मनुष्य यथार्थ वस्तुस्वरूप का चिन्तन, कथन और व्यवहार (प्रवृत्ति) नहीं कर सकता, वैसे ही मोहनीय कर्म के वशीभूत जीव सम्यग्दर्शन, सम्यचिन्तन एवं सम्यकआचरण से
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy