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________________ कर्मवाद : एक मीमांसा | १५७ अनादिकालीन नहीं, किन्तु भिन्न-भिन्न कर्मों के संयोग का प्रवाह अनादिकालीन है । साथ ही यह भी जान लेना चाहिए कि आत्मा और कर्म का सम्बन्ध अनादि-अनन्त नहीं है । जो सम्बन्ध अनादि-अनन्त होता है, उसे तोड़ा नहीं जा सक्ता; मगर जो सम्बन्ध अनादि हो उसे तो तोड़ा भी जा सकता है । जैसे सोने और मिट्टी का सम्बन्ध' अनादि होने पर भी मिट्टी मिले स्वर्ण को आग में तपाने - गलाने पर मिट्टी से सोने का सम्बन्ध टूट जाता है, स्वर्ण शुद्ध हो जाता है । वैसे ही आत्मा और कर्म का सम्बन्ध अनादि होने पर भी तप, त्याग, संयम की साधना से उसे तोड़ा जा सकता है । तार्य यह है कि दूध और घी या सोने और मिट्टी का अनादि सम्बन्ध प्रयत्नविशेष से तोड़ा जाता है, वैसे ही कर्म और आत्मा का अनादि सम्बन्ध भी रत्नत्रय में पुरुषार्थ - विशेष से तोड़ा जा सकता है । निष्कर्ष यह है - बन्धकी अपेक्षा जोव और पुद्गल (कर्म) अभिन्न हैं, किन्तु लक्षण की अपेक्षा से भिन्न हैं । बलवान् कौन: कर्म या आत्मा ? आत्मा अनन्त शक्तिमान है, परन्तु आत्मा के साथ जब कर्म बँध जाते हैं, तब कर्मों का वशवर्ती आत्मा नाना - गतियों - योनियों में चक्कर लगाता है, नाना दुःख-सुख भोगता है । ऐसी स्थिति में प्रश्न उठता है कि कर्म और आत्मा, इन दोनों में कौन बलवान् है और कौन निर्बल ? दोनों द्वन्द्व में आत्मा विजयी होता या कर्म ? इसका समाधान यह है कि बाह्य दष्टि से देखने पर तो कर्म की शक्ति प्रबल प्रतीत होती है, लेकिन अन्तर्दृष्टि से देखा जाए तो आत्मा की शक्ति ही प्रबल प्रतीत होगी । लोहा पानी से कठोर मालूम होता है, लेकिन कठोर लोहे के साथ पानी का बराबर संयोग उसे जंग लगाकर धीरे-धीरे काट डालता है । इसी प्रकार कर्मशक्ति आत्मशक्ति से प्रबल प्रतीत होने भी आत्मा के द्वारा उग्र तप, त्याग, वैराग्य और संयम की तथा ज्ञान- दर्शन - चारित्र आराधना से प्रबल हुई आत्मशक्ति कर्मशक्ति को परास्त कर देती है । आत्मा की शक्ति के आगे कर्मशक्ति टिक नहीं सकती। अगर कर्मशक्ति पर आत्मशक्ति की जीत न मानी जाए तब तो तप त्याग आदि की साधना का कोई अर्थ नहीं रह जाता । १ द्वयोरनादि सम्बन्धः कनकोपलसन्निभः । २ खवित्ता पुव्वकम्माई संजमेण तवेण य । सव्वदुक्खपहीणट्ठा पक्कमंति महेसि ॥ - उत्तराध्ययन २५/४५
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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