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________________ १५४ | जैन तत्त्वकलिका : छठी कलिका कर्म शब्द: विभिन्न अर्थों में सामान्य लोगों में विभिन्न व्यवसायों, कार्यों या व्यवहारों के अर्थ में कर्म शब्द का प्रयोग होता है । खाना-पीना, चलना-फिरना, सोना-जागना आदि क्रियाओं के लिए भी कर्म शब्द का प्रयोग होता है । नैयायिकों ने उत्क्षेपण, अवक्षेपण, आकुञ्चन, प्रसारण आदि सांकेतिक कर्मों के लिए कर्म शब्द का व्यवहार किया है। पौराणिक लोग व्रत, आदि धार्मिक क्रियाओं के अर्थ में, कर्मकाण्डी मीमांसक यज्ञ-याग आदि क्रियाकाण्डों के अर्थ में और स्मार्त विद्वान् चार आश्रमों और चार वर्णों के नियत या विहित कर्म रूप अर्थ में कर्म शब्द का प्रयोग करते हैं । कुछ दार्शनिक संस्कार, आशय, अदृष्ट, वासना आदि अर्थों में कर्म शब्द का प्रयोग करते हैं । वैयाकरण कर्म उसे मानते हैं, जिस पर कर्ता के व्यापार का फल गिरता है । में परन्तु जैन दर्शन में कर्म शब्द इन सबसे विलक्षण एवं विशिष्ट अर्थ प्रयुक्त हुआ है, जो मनोविज्ञान सम्मत भी है । कर्मशब्द का लक्षण इस प्रकार है- कीरइ जीएण हेऊह जेणं तु भण्णए कम्मं । ' 1 "जीव की अपनी शारीरिक, मानसिक एवं वाचिक शुभाशुभ क्रिया द्वारा या मिथ्यात्व अविरति, प्रमाद, कषाय और योग, इन कारणों से प्रेरित होकर रागद्वेषात्मक प्रवृत्ति से चुम्बक की तरह आकृष्ट आत्मा, जो करता है, वह कर्म कहलाता है ।" स्पष्ट शब्दों में- पुद्गलद्रव्य की अनेक वर्गणाओं (जातियों) में से जो कार्मणवर्गणा" है, वही कर्मद्रव्य है । कार्मणवर्गणा समग्र लोक में सूक्ष्मरज के रूप में व्याप्त है । वे ही सूक्ष्म रजकण मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय और योग के द्वारा आकृष्ट होकर जब जीव के साथ जुड़ जाते हैं, तब कर्म कहलाने लगते हैं । सरल शब्दों में कहें तो - आत्मा की शुभाशुभ प्रवृत्ति द्वारा आकृष्ट एवं कर्मरूप में परिणत होने वाले पुद्गल कर्म हैं । १ (क) कर्मग्रन्थ, प्रथम भाग, गा० १ (ख) परिणमदि जदा अप्पा सुहम्मि असुहम्मि रागदोसजुदो । तं पविसदि कम्मरयं णाणावरणादि भावेहिं || -प्रवचनसार २ प्रत्येक कर्म के अनन्त अनन्त परमाणु होते हैं । इतना ही नहीं, जीव के असंख्यात आत्म-प्रदेशों पर कर्मों के अनन्त अनन्त परमाणुओं का समूह जमा हुआ है । उन्हें कर्मणा कहते हैं ।
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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