________________
लोकवाद : एक समीक्षा | १४१ वे गति में सहायता करने की स्थिति में संघटित-सुश्लिष्ट नहीं होते । अतः जीव लोक के बाहर अलोक में गति नहीं कर सकते ।' लोक की संस्थिति
इस लोक (सृष्टि या जगत्) की स्थिति के विषय में कई मतभेद चले आ रहे हैं। कई पौराणिक कहते हैं कि यह सृष्टि (पृथ्वी) गाय के सींग पर टिकी हुई है। कई इसे शेषनाग के फन पर टिकी हई मानते हैं। वैष्णव लोग विष्णु के आधार पर विश्व मानते हैं-जगदाधारं विष्णुपदं । कई अन्य प्रकार की कल्पना करते हैं । परन्तु यह सब कल्पनाएँ युक्तिसंगत नहीं हैं।
बृहदारण्यक उपनिषद् में गार्गी और याज्ञवल्क्य का एक संवाद आता है, जो इस विषय से सम्बन्धित है। गार्गी ने याज्ञवल्क्य से पूछा--- "यह विश्व जल के आधार पर है, किन्तु जल किसके आधार पर है ?"
“गार्गी ! वायु के।" .
"वायु किसके आधार पर है ?'' - अन्तरिक्ष के, अन्तरिक्ष गन्धर्वलोक के, गन्धर्वलोक आदित्यलोक के, आदित्यलोक चन्द्रलोक के, चन्द्रलोक नक्षत्रलोक के, नक्षत्रलोक देवलोक के, देवलोक इन्द्रलोक के, इन्द्रलोक प्रजापति-लोक के, और प्रजापतिलोक ब्रह्मलोक के आधार पर अवस्थित है।
गार्गी ने पूछा-'ब्रह्मलोक किसके आधार पर स्थित है, ऋषिवर !'
याज्ञवल्क्य-यह अतिप्रश्न है, गार्गी ! तू इस प्रकार के प्रश्न मत कर, अन्यथा तेरा सिर कटकर गिर पड़ेगा।
परन्तु जैनशास्त्रों में इस प्रकार की बात नहीं है। भगवान् महावीर से जो भी प्रश्न पूछा गया है, उसका उन्होंने स्पष्ट एवं अनेकान्त–सापेक्ष दृष्टि से उत्तर दिया है। भगवती-सूत्र में इस विषय में भगवान् महावीर
और गौतम स्वामी का संवाद अंकित है। वह पूछा गया है-भंते ! लोक की स्थिति कितने प्रकार की है ? उत्तर में भगवान् ने कहा-गौतम ! लोकस्थिति आठ प्रकार की है-(१) वायु आकाश पर टिकी हुई है, (२) समुद्र वायु पर टिका हुआ है, (३) पृथ्वी समुद्र पर टिकी हुई है, (४) त्रस-स्थावर पृथ्वी पर टिके हए हैं, (५) अजीव जीव के आश्रित है, (६) सकर्म जीव कर्म
१ स्थानांगसूत्र स्था० १०।१ २ बृहदारण्यक उपनिषद् ३।६।१