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लोकवाद : एक समीक्षा | १३७
वैदिक पुराणों में ब्रह्मा द्वारा सृष्टि रचना का रोचक वर्णन भी है। कोई स्वयम्भू या विष्णु को जगत् का रचयिता मानते हैं।
उस युग में ईश्वर कर्तृत्ववादी मुख्यतया तीन दार्शनिक थे–वेदान्ती, नैयायिक और वैशेषिक।
वेदान्ती ईश्वर (ब्रह्म) को जगत् का उपादान कारण एवं निमित्त कारण मानते हैं । बहदारण्यक और तैत्तिरीयोपनिषद् में इसके प्रमाण मिलते हैं। ब्रह्मसूत्र में सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय ईश्वर से ही माना गया है।
नैयायिक इस चराचर सष्टि का निर्माणकर्ता और संहारकर्ता महेश्वर को मानते हैं। वैशेषिक भी लगभग इसी प्रकार ईश्वर को जगत्कर्ता सर्वव्यापक, सर्वज्ञ, नित्य, स्वाधीन और सर्वशक्तिमान मानते हैं।'
सांख्यमतवादी प्रधान (प्रकृति) को जगत् का कर्ता मानते हैं । कई लोग जगत् की माया, यमराज द्वारा रचित मानते हैं।
(ख) छान्दोग्योपनिषद्, खण्ड १२ से १८, अ० ५ (ग) ऐतरेयोपनिषद्, प्रथम खण्ड (घ) हिरण्यगर्भः समवर्तताऽग्रे, स ऐक्षत,"तत्तेजाऽसृजत ।
-छान्दोग्य, खण्ड २, श्लोक ३ (ङ) ॐ ब्रह्मा देवानां प्रथमः सम्बभूव विश्वस्य कर्ता, भुवनस्य गोप्ता ।
-मुण्डक ० खण्ड १, श्लोक १ (च) सोऽकामयत बहुस्यां प्रजायेय "सर्वमसृजतः -तैत्तिरीय० अनुवाक् ६ (छ) प्रजाकामो वै प्रजापतिः""प्रजाः करिष्ये ।।
-प्रश्नोपनिषद् प्रश्न १, श्लोक ४६ (ज) स वै नैव रेमे, तस्मादेकामी""ततः सृष्टिरभवत् ।
-बृहदाण्यक ब्रा. ४, सू. ३-४ १ (क) आसीदिदं तमोभूतं..."मिला पुनः सर्वबीजानाम्। -वैदिकपुराण
(ख) सूत्रकृतांग शीलांक वत्ति, पत्रांक ४२, (ग) ब्रह्म वा इदमग्र आसीदेकमेव......"तदेतद्ब्रह्म क्षत्रिय-विट्-शूद्रः ।
-बृहदा० अ० १ ब्रा० ४ (घ) यतोवा इमानि भूतानि जायन्ते, येन जातानि जीवन्ति, यत्प्रयन्त्यभिसंविशन्ति
तद् विजिज्ञासस्व तद् ब्रह्म इति । -तैत्तिरीय० ३, भृगुवल्ली (ङ) द्वे वा व ब्रह्मणो रूपे मूर्तं चैव अमूर्तं च -बृहदा० ३।२, ब्रा० ३।१ (च) जन्माद्यस्य यतः
--ब्रह्मसूत्र १।१।१