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लोकवाद - एक समीक्षा | १३३
ग्रहमाला से चार योजन की ऊँचाई पर हरितरत्नमय बुध का तारा है। इससे तीन योजन ऊपर स्फटिकरत्नमय शुक्र का तारा है। इससे तीन योजन ऊपर पीतरत्नमय बहस्पति का तारा है। इससे तीन योजन ऊपर रक्तरत्नमय मंगल का तारा है। इससे तीन योजन ऊपर जाम्बूनदमय शनि का तारा है।
___ इस प्रकार सम्पूर्ण ज्योतिश्चक्र मध्यलोक में ही है, और समतल भूमि से ७६० योजन की ऊँचाई से आरम्भ होकर ६०० योजन तक अर्थात् ११० योजन में स्थित है। ज्योतिष्क देवों के विमान जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से ११२१ योजन दूर चारों ओर घूमते रहते हैं। अधोलोक परिचय
___ मध्य लोक से नोचे का प्रदेश अधोलोक कहलाता है। इसमें सात नरक पथ्वियाँ हैं जो रत्नप्रभा आदि सात नामों से विश्रुत है। इनमें नारक जीव रहते हैं। इन सातों भूमियों को लम्बाई-चौड़ाई एक-सी नहीं है । नीचे-नीचे की भूमियाँ ऊपर-ऊपर को भूमियों से उत्तरोत्तर अधिक लम्बी-चौड़ी हैं। ये भूमियाँ एक दूसरो के नीचे हैं, किन्तु परस्पर सटी हुई नहीं हैं । बीच-बीच में अन्तराल (खाली जगह) है। इस अन्तराल में घनीदधि, घनवात और आकाश है। अधोलोक को सात भूमियों के नाम इस प्रकार हैं-रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा
और तमस्तमःप्रभा। इनके नाम के साथ जो प्रभा शब्द जुड़ा हुआ है, वह इनके रंग को अभिव्यक्त करता है।'
सात नरक पृथ्वियों की मोटाई इस प्रकार है
रत्नप्रभापृथ्वी के तीन काण्ड हैं—पहला रत्नबहुल खरकाण्ड है, जिसकी ऊपर से नीचे तक की मोटाई १६००० योजन है। उसके नीचे दूसरा काण्ड पंकबहल है, जिसको मोटाई ८०००० योजन है और उसके नीचे तृतीय काण्ड जलबहुल है, जिसकी मोटाई ८४००० योजन है। इस प्रकार तोनों काण्डों को कुल मिलाकर मोटाई १,८०००० योजन है।
___इसमें से ऊपर और नीचे एक-एक हजार योजन छोड़कर बीच में १७८००० योजन का अन्तराल है, जिसमें १३ पाथड़े, और १२ अन्तर हैं। बोच के १० अन्तरों में असुरकुमार आदि इस प्रकार के भवनपतिदेव रहते हैं। प्रत्येक पाथड़े के मध्य में एक हजार योजन को पोलार है, जिसमें तीस
१ रत्नशकरा-बालुकापंकधूमतमोमहातमःप्रभाभूमयो
सप्ताऽधोऽधः पृथुतराः । तासु नरका ।
घनाम्बुवाताकाशप्रतिष्ठाः -तत्त्वार्थ० अ०३, सू० १-२