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लोकवाद : एक समीक्षा | १३१
कहते हैं ।'' इन अढाई द्वीपों की रचना एक सरीखी है । अन्तर केवल इतना ही है कि इनका क्षेत्र क्रमशः दुगुना दुगुना होता गया है । पुष्करद्वीप से मध्य में मानुषोत्तर पर्वत आ जाने से मनुष्यक्षेत्र में आधा पुष्करद्वीप ही गिना गया है ।
जम्बूद्वीप में सात मुख्य क्षेत्र हैं- भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत | विदेह क्षेत्र में दो अन्य प्रमुख भाग हैं – देवकुरु और उत्तरकुरु । धातकीखण्ड और पुष्करार्धद्वीप में इन सभी क्षेत्रों की दुगुनीदुगुनी संख्या है। ये सभी क्षेत्र तीन भागों में विभक्त हैं- कर्मभूमि, अकर्मभूमि और अन्तरद्वीप ।
कर्मभूमि क्षेत्र वे हैं, जहाँ मानव कृषि, वाणिज्य, शिल्पकला आदि hi ( पुरुषार्थ) के द्वारा जीवन यापन करते हैं । कर्मभूमिक क्षेत्र में सर्वोत्कृष्ट पुण्यात्मा और निम्नातिनिम्न पापात्मा दोनों प्रकार के मनुष्य पाए जाते हैं ।
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कर्मभूमि क्षेत्र १५ हैं - ५ भरत हैं, जिनमें से जम्बूद्वीप में एक, धातकीखण्ड में दो और पुष्करार्द्ध' - द्वीप में दो हैं । इसी तरह ५ ऐरावत हैंजम्बूद्वीप में एक, धातकीखण्ड में दो और पुष्करार्द्धद्वीप में दो; तथा महाविदेह भी पाँच हैं - एक जम्बूद्वीप में, दो धातकीखण्ड में और दो पुष्कराद्ध - द्वीप में हैं । यो अढाई द्वीपों में कर्मभूमि के सब क्षेत्र पन्द्रह हैं ।
अकर्मभूमिक क्षेत्र वे हैं, जहाँ कृषि आदि कर्म किये बिना, अनायास ही भोगोपभोग की सामग्री मिल जाती है; जीवननिर्वाह के लिए कोई पुरुषार्थ नहीं करना पड़ता । यहाँ भोगों - भोग्यसामग्री की प्रचुरता होने से यह भोगभूमि भी कहलाती है । जम्बूद्वीप में एक हैमवत, एक हरिवर्ष, एक रम्यकवर्ष एक हैरण्यवत, एक देवकुरु और एक उत्तरकुरु, यों छह भोगभूमिक क्षेत्र हैं । धातकीखण्ड और पुष्कराद्ध द्वीप में इनके प्रत्येक के दो-दो क्षेत्र होने से दोनों द्वीपों में बारह-बारह क्षेत्र हैं । यो सब मिलाकर कर्मभूमि के ३० क्षेत्र होते हैं ।
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अन्तरद्वीप – कर्मभूमि और अकर्मभूमि के अतिरिक्त जो समुद्र के मध्यवर्ती द्वोप बच जाते हैं, वे अन्तरद्वीप कहलाते हैं। जम्बूद्वीप के चारों
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उत्तराध्ययन ३६।७
२ भरत हैमवत हरिविदेह र म्यक है रन्यवतं रावत वर्षाः क्षेत्राणि । - तत्त्वार्थ सूत्र ३।१० ३ उत्तराध्ययन ३६।१९५-१९६