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आत्मवाद, लोकवाद, कर्मवाद, क्रियावाद | ११३
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ग्राहक है । ये तीनों भिन्न-भिन्न हैं । यदि लोहार (ग्राहक) न हो तो संडासी लोहपिण्ड को ग्रहण नहीं कर सकती, उसी प्रकार आत्मा न हो तो, इन्द्रियाँ या मन अपने ग्राह्य (ज्ञ ेय) विषय को ग्रहण नहीं कर सकते । अतः आत्मा नामक ग्राहक (ज्ञाता) का स्वतंत्र अस्तित्व है ।
(५) साधक और साधन का पृथक्त्व - शरीर में पांच इन्द्रियाँ हैं, इनको साधन बनाने वाला आत्मा (साधक) इन्द्रियों से भिन्न हैं । पांचों इन्द्रियों से आत्मा रूप, रस, गन्ध, शब्द और स्पर्श ग्रहण करता है । जैसे—- दीपक से देखा जाता है, परन्तु दीपक और देखने वाला, दोनों पृथक्-पृथक् हैं; इसी प्रकार इन्द्रियसमूह और विषयों का ग्रहण करने वाला, ये दोनों पृथक्-पृथक् हैं । साधनभूत इन्द्रियाँ आत्मा (साधक) के अभाव में विषयों को ग्रहण नहीं कर सकतीं । मृत शरीर में इन्द्रियों का अस्तित्व होने पर भी मृतक व्यक्ति को उनसे किसी प्रकार का ज्ञान नहीं होता । इससे यह सिद्ध होता है कि साधनभूत इन्द्रियाँ और उनसे ज्ञान प्राप्त करने वाला आत्मा, दोनों पृथक्पृथक् हैं । आत्मा का स्वतंत्र अस्तित्व है ।
(६) स्मरणकर्त्ता आत्मा है - इन्द्रियों के नष्ट हो जाने पर भी उनके अस्तित्वकाल में उनके द्वारा देखे, सुने और जाने हुए विषयों का स्मरण होता है । जैसे - कान से कोई वस्तु सुनी या आँख से कोई वस्तु देखी, किन्तु संयोगवश कान का पर्दा फट जाने पर या नेत्र ज्योति नष्ट हो जाने पर भी पूर्वश्रुत और दृष्ट वस्तु की स्मृति हो जाती है । उनका स्मरण करने वाली इन्द्रियाँ तो हो नहीं सकती, अतः इनसे पृथक् चैतन्यस्वरूप आत्मा ही है । आत्मा के अभाव इन्द्रियाँ और मन दोनों निष्क्रिय हैं, अतः दोनों के ज्ञान और स्मरण का मूल स्रोत आत्मा है ।
(७) संकलनात्मक ज्ञान का ज्ञाता - इन्द्रियों का अपना-अपना निश्चित विषय होता है ! एक इन्द्रिय दूसरी इन्द्रिय के विषय को नहीं जान सकती । अमुक वस्तु को मैंने स्पर्श किया, उसकी आवाज सुनी उसको देखा, उसकी सुगन्ध ली, उसका रसास्वादन किया; इस प्रकार एक साथ सभी विषयों का संकलनात्मक ज्ञान किसी एक इन्द्रिय को नहीं हो सकता। सभी इन्द्रियों के विषयों के संकलनात्मक ज्ञान का ज्ञाता पांचों इन्द्रियों से भिन्न और कोई है, और वह आत्मा ही है । जैसे - पापड़ खाते समय स्पर्श, रूप, शब्द, रस और गन्ध इन पांचों का एक साथ अकेला अनुभव करने वाला आत्मा है, इन्द्रियाँ नहीं; क्योंकि वह आँख नहीं हो सकती, आँख का काम केवल देखने का ही है, स्पर्श आदि का नहीं । स्पर्शेन्द्रिय भी नहीं हो सकती, क्योंकि उसका कार्य