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________________ ११४ | जैन तत्त्वकलिका : छठी कलिका केवल छूने का है, न ही अन्य कोई नाक, कान या जीभ ही हो सकती है, उनका कार्य अपने-अपने विषय को ग्रहण करना है । अतः सिद्ध होता है कि वस्तु को देखने, छूने, सूघने, सुनने और चखने वाला, जो एक है, वह इन्द्रियों से भिन्न आत्मा ही है। (८) पूर्वसंस्कार एवं जन्म की स्मृति-शरीर एवं इन्द्रियाँ यहाँ नष्ट हो जाने पर भी दूसरे क्षेत्र में जन्म लेते ही बालक माता का स्तनपान करता है, किसी-किसी बालक को पूर्वजन्म का भी स्मरण रहता है। किसी-किसी बालक को तो पिछले तीन-चार जन्मों तक की घटनाएँ भी याद आ जाती हैं। वर्तमान में ऐसी कई सच्ची घटनाएँ समाचारपत्रों में आती हैं। इससे सिद्ध होता है कि पूर्वसंस्कार एवं पूर्वजन्म का स्मरण करने वाला आत्मा. ही है। (E) सत्प्रतिपक्ष-जिसके प्रतिपक्ष का अस्तित्व होता है, उसके अस्तित्व को अवश्य ही तार्किक समर्थन मिलता है। 'अचेतन' चेतन का प्रतिपक्षी है। यदि चेतना की सत्ता न होती तो 'न चेतन'-- अंचेतन इस प्रकार का अचेतन सत्ता का नामकरण और बोध ही नहीं हो सकता था। अतः चेतन आत्मा का अस्तित्व सिद्ध होता है। (१०) बाधक प्रमाण का अभाव-आत्मवादियों का कहना है कि आत्मा है, क्योंकि उसके अस्तित्व का खण्डन करने वाला कोई भी बाधक प्रमाण नहीं है। (११) सत् का निषेध-असत् का निषेध नहीं होता। जिसका निषेध होता है, वह वस्तु अवश्य ही अस्तित्व में होती है । अतः यदि आत्मा का अस्तित्व न हो तो उसका निषेध नहीं किया जा सकता । निषेध चार प्रकार का होता है-(१) संयोग निषेध, (२) समवाय निषेध, (३) सामान्य निषेध और (४) विशेष निषेध । अतः आत्मा नहीं है, इसमें आत्मा का निषेध नहीं, किन्तु उसका किसी के साथ होने वाले संयोग आदि का निषेध है। चारों के क्रमशः उदाहरण – (१) आत्मा शरीर नहीं है, (२) आत्मा अचेतन नहीं होता, (३) ऐसा आत्मा और कोई नहीं है, (४) आत्मा जीव के शरीर से बड़ा नहीं होता। इन चारों प्रकार के निषेधों में आत्मा के अस्तित्व का निषेध नहीं है। (१२) संशय ही आत्मसिद्धि का कारण-जो यह सोचता है कि 'मैं नहीं हूँ'; वही आत्मा (जीव) है । चेतन को ही अपने अस्तित्व के विषय में संशय हो सकता है, विकल्प उठ सकता है, अचेतन को कभी नहीं। यह है या नहीं ? ऐसी ईहा या विकल्प चेतन को ही होता है।
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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