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१०८ | जैन तत्त्वकलिका : छठी कलिका इन्द्रियाँ शक्तिहीन न बनें, तब तक धर्माचरण कर लो। अन्यथा, मृत्यु के समय वैसे ही पछताना होगा, जैसे साफ-सुथरे राजमार्ग को छोड़कर ऊबड़-खाबड़ मार्ग से जाने वाला गाड़ीवान रथ की धुरी टूट जाने पर पछताता है।"
___ जो रात या दिन चला जाता है, वह फिर वापस लौट कर नहीं आता । जो अधर्म करता है, उसके रात-दिन निष्फल होते हैं। किन्तु धर्मनिष्ठ व्यक्ति के वे सफल होते हैं। अतः धर्माचरण करने में एक क्षण भी प्रमाद न करो। ___इस प्रकार क्रियावादी वर्ग ने संयमपूर्वक जीवन बिताने, धर्गाचरण में प्रमाद न करने, दुर्लभ मनुष्य-जन्म को व्यर्थ न खोने का उपदेश दिया।
इसके विरुद्ध अक्रियावादी वर्ग ने आत्मा, परलोक आदि आस्तिकतत्त्वों से इन्कार करते हुए कहा-"जब आत्मा ही नहीं है, अथवा यहीं सारी लीला समाप्त हो जाने वाली है, इससे आगे कुछ नहीं है, यह जो प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर हो रहा है, इतना ही लोक है। प्रिये ! खाओ, पीओ और मौज उड़ाओ, चिन्ता करने जैसी कोई बात नहीं है। जो कुछ कर लोगी वही तुम्हारा है। मृत्यु के बाद कुछ भी आना-जाना नहीं है। जब तक जीओ, सुख से जीओ । कर्ज करके भी घी पीओ। यह शरीर यहाँ भस्म हो जाने के बाद पुनरागमन कहाँ है ।।
१ जरा जाव न पीलेइ, वाही जाव न वड्ढइ । __जाविदिया न हायंति, ताव धम्म समायरे ॥ -दशवकालिक अ. ८ गा. ३५ २ जहा सागडिओ जाणं, समं हिच्चा महापहं ।
विसमं मग्गमोइण्णो अक्खे भग्गम्मि सोयइ ।।.. एवं धम्म विउक्कम्म, अहम्म पडिवज्जिया ।
बाले मुच्युमुहं पत्ते अक्खे भग्गे व सोयई ।। -उत्तरा० अ. ५ गा. १४-१५ ३ (क) जा जा वच्चइ रयणी न सा पडिनियत्तइ ।
अहमं कुणमाणस्स अफला जति राईओ। जा जा वच्चइ रयणी न सा पडिनियत्तइ ।
धम्मं च कुणमाणस्स सफला जंति राईओ। (ख) 'समयं गोयम ! मा पमापए । ४ (क) एतावानेव लोकोऽयं (पुरुषो), यावानिन्द्रियगोचरः ।
भद्र ! वृकपदं पश्य यद्वदन्त्यबहुश्रुताः ।। -आचार्य बृहस्पति (ख) पिब खाद च चारुलोचने ! यदतीतं वरगात्रि ! न ते । ५ यावज्जीवेत् सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृत पिबेत् ।
भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ।। -आचार्य बृहस्पति