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________________ सम्यग्दर्शन-स्वरूप | १०३ मोक्षपद की प्राप्ति मनुष्य हो कर सकते हैं । नौ तत्त्वों का श्रद्धान-ज्ञान इन नौ तत्त्वों का जिस रूप में सर्वज्ञ वीतराग तीर्थंकरों ने हेय, ज्ञय, उपादेय रूप या स्वरूप बताया है, उस रूप में जानकर इन तत्त्वभूत पदार्थों पर श्रद्धान करना ही सम्यग्दर्शन है, जो श्रुतधर्म का प्रमुख अंग है। सम्यग्दर्शन के विकास एवं दढ़ता के लिए आठ आचार पूर्वोक्त तत्त्वार्थ श्रद्धानरूप सम्यग्दर्शन को विकसित करने एवं उस पर दृढ़ रहने के लिए निम्नोक्त आठ गुणों की आवश्यकता हैं—(१) निःशंकता, (२) निष्कांक्षता, (३) निर्विचिकित्सा, (४) अमूढ़दृष्टित्व, (५) उपबहण, (६) स्थिरीकरण, (७) वात्सल्य और (८) प्रभावना।। ये आठ दर्शनाचार हैं । इस अष्टसूत्री दर्शनाचार के क्रियान्वित करने से श्रुतधर्म का सम्यक्त्व के रूप में शुद्ध आचरण होता है। इनमें से प्रथम चार आचार सम्यक्त्व का विकास करने वाले आन्तरिक गुण हैं, और अन्तिम चार आचार बाह्यगुण हैं । (१) निःशंकता-धर्म, सिद्धान्त या तत्त्वभूत पदार्थ के विषय में निःशंक बनना, दृढ़ विश्वास रखना कि जिनेन्द्र भगवान् ने जिस तत्त्व का जो वस्तुस्वरूप बंताया है, वह वैसा ही है । जो धर्म या तत्त्व विषयक शंका रखता है, वह ध्येय तक नहीं पहुंच सकता, न हो श्रुतधर्म पर दृढ़ रह सकता है। (२) निष्कांक्षता--जिनप्रज्ञप्त सम्यक धर्म, सिद्धान्त या तत्त्व के अतिरिक्त अन्य धर्मों आदि की आकांक्षा न करना, अपने धर्म तथा तत्त्व पर अचल अटल रहकर निष्कामभाव से सत्प्रवृत्ति करते रहना सम्यक्त्व की दृढ़ता के लिए आवश्यक है। बात-बात में अन्य धर्म या तत्त्व के विषय में वागाडम्बर देखकर उसमें न फंसना श्रुतधर्म का आचार है । (३) निविचिकित्सा-सम्यक् वीतराग प्ररूपित धर्म के फल के विषय में सन्देह करना या सम्यग्ज्ञानी के आचार-विचार के प्रति घृणा न करना निर्विचिकित्सा है । इस गुण से श्रुतधर्मपालन में दृढ़ता आती है। (४) अमूढदृष्टित्व-देवमूढ़ता, गुरुमूढ़ता, धर्ममूढ़ता, लोकमूढ़ता तथा अन्धविश्वास, कूरूढ़ि आदि में न फंसना वरन् विवेकबुद्धिपूर्वक धर्म का आचरण करना तत्त्वभूत पदार्थों पर विश्वास रखना सम्यग्दर्शन की विशुद्धि के लिए अनिवार्य है। अमूढदृष्टि ही श्रुतधर्म का शुद्धरूप में पालन कर सकता है।
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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