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________________ ३२ | प्रस्तावना करता हुआ उन दिवंगत महान् आत्मा का हृदय से आभार मानता हूँ कि आगमों के सम्पादन, अनुवाद विवेचन आदि का जो वृहत कार्य मैंने उठाया है, उसमें मुझे तथा सम्पादन - रत सुधीजनों को आचार्यवर की उक्त कृतियों से मार्गदर्शन तथा सहयोग प्राप्त हुआ है। उपर्युक्त आगम वाङमय के अतिरिक्त आचार्यवर ने जैन तत्त्व ज्ञान, जैन धर्म शिक्षा, प्राकृत व्याकरण, कोष इत्यादि विषयों पर निम्नांकित पुस्तकों की रचना की १. तत्वार्थ सूत्र : जैनागम - समन्वय २. जैनागमों में अष्टांग योग ३. जैनागमों में स्याद्वाद ४. जैनागमों में परमात्मवाद ५. जैनागमों में न्यायसंग्रह ६. जीव-कर्म-संवाद ७. जीव-शब्द-संवाद ८. विभक्ति-संवाद ९. आस्तिक-नास्तिक - संवाद १०. कर्म - पुरुषार्थं निर्णय ११. भगवान् महावीर और माँस निषेध १२. वीरत्थुई १३-२०. जैन धर्म शिक्षावली; आठ भाग २१. प्राकृत बाल बोंध २२. प्राकृत बाल मनोरमा २३. सचित्र अर्द्धमागधी कोष जैसा कि इन पुस्तकों के नाम से स्पष्ट है, जैन धर्म, दर्शन एवं साहित्य के अध्ययन-अनुशीलन में वास्तव में ये बड़ी सहायक तथा उपयोगी कृतियाँ हैं । आचार्य - वर की सारस्वत आराधना तथा साहित्यिक सर्जना आदि में क्षण-क्षणवर्ती सक्रियता एवं जागरूकता का ही यह सुपरिणाम है कि उनके व्यापक अध्ययन एवं चिरन्तन अनुभव से समुद्भूत इतना बहुमूल्य साहित्य आज हमें उपलब्ध है । ज्ञानानुशीलन, साहित्यिक शोध तथा अभिनव प्रणयन में अभ्युद्यत विद्याव्यासंगी जनों के लिए उनका जीवन एक अनुकरणीय उदाहरण है । जैन तत्त्व कलिका : विषयवस्तुः विस्तार परमपूज्य आचार्यवर श्री आत्मारामजी महाराज द्वारा विरचित जैन तत्त्व कलिका का प्रथम संस्करण लगभग चार दशाब्द पूर्व लाहौर से प्रकाशित हुआ था । विद्वज्जगत् में ग्रन्थ बहुत समाहृत हुआ ।
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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