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________________ १४ | जैन तत्त्वकलिका : पंचम कलिका वह मोहमूढ़, असदाचारी और अतिभोगी बनकर उसका उपभोग करे तो उससे उसको पाप का बन्ध होता है। इस प्रकार का पुण्य पापानुबन्धी पुण्य कहलाता है। पुण्यानुबन्धी पुण्य मार्गदर्शक समान है और पापानुबन्धी पुण्य पुण्यसमृद्धि को लूटने वाले लुटेरे के समान है। यहाँ पुण्यानुबन्धी पुण्य ही कथंचित् उपादेय है। पुण्यबन्ध के नौ' प्रकार-(१) अन्नपुण्य-पात्र को अन्नदान करने से, (२) पानपुण्य --पात्र को जलदान करने से, (३) लयनपुण्य-पात्र को स्थान देने से, (४) शयनपुण्य-पात्र को शयनीय सामग्री देने से, (५) वस्त्रपुण्य--पात्र को वस्त्र दान करने से, (६) मनःपुण्य-मन के शुभ संकल्प से, या मन से दूसरों का हित चाहने से, (७) वचनपुण्य-वचन से गुणीजनों का कीर्तन करने से या हित, मित, तथ्य और पथ्य वचन बोलने से, (८) कायपुण्य- शरीर के शुभ व्यवहार से, या शरीर से दूसरों की सेवा करने से, परदुःखनिवारण करने से, जीवों को सुख-शान्ति पहँचाने से, और (8) नमस्कारपुण्य-देव, गुरु आदि योग्य पात्र को नमस्कार करने से, सब के साथ विनम्र व्यवहार से। कोई व्यक्ति पापी, दुराचारी आदि हो, किन्तु भूख, रोग आदि से पीड़ित हो, भयभीत हो उसे करुणापात्र समझकर अनुकम्पा बुद्धि से उसे दान देने से, क्षधा मिटाने से, भय दूर करने आदि से पापबन्ध नहीं, पुण्यबन्ध होता है। पुण्य-फल भोगने के ४२ प्रकार-नौ प्रकार से बाँधे हए पूण्य ४२ प्रकार से भोगे जाते हैं-(१) सातावेदनीय, (२) उच्चगोत्र, (३) मनुष्यगति, (४) मनुष्यानुपूर्वी, (५) देवंगति, (६) देवानुपूर्वी, (७) पंचेन्द्रियजाति, (८) औदारिक शरीर, (8) वैक्रियशरीर, (१०) आहारकशरीर, (११) तैजसशरीर, (१२) कार्मणशरीर, (१३) औदारिकशरीर के अंगोपांग, (१४) वैक्रियशरीर के अंगोपांग, (१५) आहारक शरीर के अंगोपाग, (१६) वज्रऋषभनाराच संहनन, (१७) समचतुरस्र संस्थान, (१८) शुभवर्ण, (१६) शुभगन्ध, (२०) शुभरस, (२१) शुभस्पर्श, (२२) अगुरुलघुत्व (एकदम भारी या एकदम हल्का शरीर न होना), (२३) पराघात नाम [दूसरों से पराजित न होना], (२४) उच्छ्वास [पूरा उच्छ्वास लेना], (२५) आतपनाम [प्रतापी होना], (२६) उद्योतनाम [तेजस्वी होना], (२७) शुभविहायोगति, (२८) शुभनिर्माणनाम, (२९) त्रसनाम १ स्थानांगसूत्र, स्थान ६
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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