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सम्यग्दर्शन-स्वरूप | ६३
करते हों, साथ-साथ पुण्य भी करते हैं, उससे पाप धुल जाएगा और हमें पुण्य का ही फल मिलेगा।" परन्तु वीतराग मनीषियों ने स्पष्ट बताया कि यह मान्यता सरासर गलत है। जितना पाप करोगे, उसका उतना फल भोगना पड़ेगा। अतः पुण्य-पाप के स्वतन्त्र फलों को ध्यान में रखकर पुण्योपार्जन ही करो, पाप को छोड़ो।
कर्मसिद्धान्त के अनुसार शुभाशुभ भाव से शुभाशुभ कर्म का बन्धन होता है। वही क्रमशः पुण्य और पाप है। मन-वचन-काया की शुभ क्रियाओं द्वारा शुभ कर्मप्रकृतियों का संचय किया जाए और जब वे प्रकृतियाँ उदय में आएँ, तब जीव को उनके फलस्वरूप सुख मिलता है, अनुकूल अभीष्ट सामग्री या धर्म सामग्री प्राप्त होती है, सब प्रकार से सुखों का अनुभव होता है, उसी को पुण्य तत्त्व कहते हैं।
पुण्य का अभिप्राय- पुण्य शब्द का व्युत्पत्ति के अनुसार अर्थ होता है'पुनातीति पुण्यम्-परम्परा से जो आत्मा को पवित्र करे, वह पुण्य है । जैसे-पुण्य उपार्जन करने में पहले तो वस्तुओं पर से ममत्व छोड़ना पड़ता है, इच्छाओं को रोकना पड़ता है, गुणज्ञ होना पड़ता है। अपने व्यवहार को नम्र बनाना पड़ता है, आदतों को सुधारना पड़ता है, स्वार्थत्याग करके उदारता करनी पड़ती है, आत्मा को वश में करके मन, वचन, काया और इन्द्रियों को शुभकार्य में लगाना पड़ता है, दुःख-पीड़ितों के दुःख को अपना मानकर उसे दूर करने की भावना और तदनुसार प्रवृत्ति करनी पड़ती है। इसलिए पुण्य-उपार्जन करने में पहले तो कुछ कष्ट होता है, परन्तु उसके परिणामस्वरूप दीर्घकाल के लिए सुख प्राप्ति होती है। इस दृष्टि से पूण्य आत्मा का शोधन करता है, मन-वचन-काय के योगों को पावन करता है।
पुण्य के दो भेद-पुण्य दो प्रकार का होता है- पुण्यानुबन्धी पुण्य और पापानुबन्धी पूण्य । जो पुण्य, पुण्य की परम्परा को चलाए, अर्थात्-जिस पुण्य को भोगते हुए नवीन पुण्य का बन्ध हो, वह पुण्यानुबन्धी पूण्य है, और इसके विपरीत यदि नवीन पाप का बन्ध हो, वह पापानुबन्धी पुण्य है। उदाहरणार्थ--एक मनुष्य को पूर्वपुण्य के प्रताप से सभी प्रकार के अभीष्ट सुख-साधन प्राप्त हों, फिर भी वह उनमें मोहमूढ़ न बनकर आत्महित के उद्देश्य से मोक्षाभिलाषा रखता हुआ धर्मक्रिया या धर्मकार्य करे तो पूर्व पूण्य भोगते समय उसके नये पुण्यों का बन्ध होता है। उसका वह पुण्य पुण्यानुबन्धी पुण्य कहलाता है। दूसरी ओर एक व्यक्ति के पूर्वभव के पुण्यफलस्वरूप सभी प्रकार के सुख-साधन प्राप्त हुए हों, लेकिन वर्तमान में