________________
सम्यग्दर्शन-स्वरूप | ε१
वेन्द्रिय कहलाते हैं । जैसे-लट, गिंडौला, अलसिया, शंख, जोंक आदि । जिनमें पूर्वोक्त दो इन्द्रियों के अतिरिक्त तीसरी घ्राणेन्द्रिय और हो, वे त्रीन्द्रिय कहलाते हैं। जैसे- चींटी, दीमक, मकोड़े, खटमल, कनखजूरा, जू, लीख, कुन्थुआ, वीरबहूटी आदि । चतुरिन्द्रिय जीव वे कहलाते हैं जिनके पूर्वोक्त तीन इन्द्रियों के अतिरिक्त चौथी चक्षुरिन्द्रिय हो । जैसे - टिड्डी, पतंगा, मक्खी, मच्छर, भौंरा, डांस, कंसारी, मकड़ी आदि । जिनके पूर्वोक्त चार इन्द्रियों के अतिरिक्त पांचवीं श्रोत्रेन्द्रिय भी हो, वे पंचेन्द्रिय कहलाते हैं । पंचेन्द्रिय जीवों के मुख्यतः चार प्रकार हैं-नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव | पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च में जलचर, स्थलचर, खेचर, उरः परिसर्प और भुजपरिसर्प ये पांचों आ जाते हैं । तिर्यंचों के आगे दो भेद और होते हैं- (१) संज्ञी और (२) असंज्ञी । संज्ञी तिर्यंच मन सहित होते हैं, और असंज्ञी तिर्यंच मन रहित ।
नारक से सात प्रकार के नरकों में उत्पन्न होने वाले जीवों को गणना होती है । सभी कर्मभूमि- अकर्मभूमि आदि क्षेत्रों में पैदा होने वाले मानव मनुष्य गति में परिगणित किये जाते हैं । देव से भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक, इन चारों प्रकार के देवों का बोध होता है ।
समस्त संसारी जीवों को चारों गतियों में विभक्त करें तो एकेन्द्रिय से लगाकर तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय तक तिर्यंच कहलाते हैं, जिसके मुख्य ४८ भेद हैं। मनुष्यगति में उत्पन्न मनुष्यों के कुल ३०३ भेद होते हैं । देवगति में उत्पन्न देवों के कुल १६८ भेद होते हैं । तथा नरकगति में उत्पन्न नारकों के कुल १४ भेद होते हैं । इस प्रकार समस्त संसारी जीवों के मध्यम रूप से ५६३ भेद होते है ।
(२) अजीवतत्त्व
जीव का प्रतिपक्षी तत्त्व अजीव है । अजीव में जीव के लक्षण नहीं पाए जाते। अजीव में उपयोग शक्ति नही होती । वह जड़-चेतनाहीन, अंकर्त्ता, अभोक्ता है किन्तु वह भी अनादि- अनन्त और शाश्वत है । वह सदैव निर्जीव रहने से अजीव कहलाता है । जैसे घड़ी आदि पदार्थ समय का ठीक-ठीक ज्ञान कराते हैं, परन्तु स्वयं वे उपयोगशून्य होते हैं ।
अजीवतत्त्व' के भेद - अजीवतत्त्व पाँच प्रकार का है -- (१) धर्मास्तिकाय, (२) अधर्मास्तिकायं, (३) आकाशास्तिकाय, (४) काल और (५) पुद्गलास्तिकाय । इन पाँचों में से चार अरूपी अजीव हैं और एक पुद्गलास्तिकाय रूपी द्रव्य है । क्योंकि वह वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से युक्त है। जितने भी निर्जीव पदार्थ दृष्टिगोचर होते हैं, वे सब पुद्गलात्मक हैं ।