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________________ ८४ | जैन तत्त्वकलिका : पंचम कलिका 'जीवो अणाइ अनिधणो अविनासी अक्खओ धुवो निच्चं ।' अर्थात्-जीव अनादि है, अनिधन है, अविनाशी है, अक्षय है, ध्रव है और नित्य है। वास्तव में जीव (आत्मा) का स्वरूप तो ऐसा ही है, इसे स्पष्टरूप से समझ लेना आवश्यक है। अनादि-कहने का आशय यह है कि वह किसी. विशेषः समय पर उत्पन्न नहीं हुआ; अमुक समय पर उसका जन्म नहीं हुआ। वह अजन्मा है, अज है। यदि जीव को समय-विशेष पर उत्पन्न हुआ माना जायेगा तो प्रश्न होगा-वह कब हुआ ? कैसे हुआ ? किसने उत्पन्न किया ? इत्यादि अनेक प्रश्न उत्पन्न होंगे, जिनमें अनवस्थादि दोष की संभावना तथा युक्ति-प्रमाणविरुद्धता होने से वह तथारूप उत्पत्तिस्वभाव का सिद्ध नहीं होता। - यदि कहें कि 'देह के साथ ही जीव उत्पन्न होता है, उसकी उत्पत्ति का कारण पंचभूतों का संयोजन है', तब तो पंचभूतों के संयोजन से उत्पन्न होने वाले सभी जीवों का एक सरीखा ज्ञान, दर्शन, स्वभाव आदि होना चाहिए। परन्तु ऐसा है नहीं। प्राणियों के ज्ञान, दर्शन और स्वभाव में न्यूनाधिकत्व और पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। फिर पांचों भूत जड़ हैं, चैतन्यरहित हैं, उनसे चैतन्ययुक्त जोव की उत्पत्ति कैसे हो सकती है ? अतः जीव को अनादि मानना ही उचित है । अनादि मानने पर ये सब शंकाएँ समाहित हो जाती हैं । निश्चय नय से जीव अनादि होने पर भी व्यवहारनय से जीव सुख-दुःखवेदनावश शुभाशुभ कर्म बांधता है और उनके फलस्वरूप नानागतियों और योनियों में, विविध पर्यायों में उत्पन्न होता है। पर्याय दृष्टि और एक गति से दूसरी गति में जाने की अपेक्षा उसकी आदि मानी जाती है। जीव को अनिधन कहने का आशय यह है कि वह कभी भी मरता नहीं, अमर है। निश्चयनय की दृष्टि से यह कथन है, किन्तु व्यवहारनय की दष्टि से यह कहा जाता है कि 'अमुक जीव मर गया।' मर जाने का अर्थ इतना ही है कि उसने जिस देह को धारण किया था, उस देह से उसका सम्बन्ध विच्छेद हो गया। आयुष्यकर्म की अवधि पूर्ण होने पर उसका इस देह से छुटकारा हुआ। अन्य गतियोनि में उसका जन्म हुआ। जीव की देहपरिवर्तन की इस क्रिया को मरण कहा जाता है, किन्तु वास्तव में यह जीव का विनाश नहीं है। जीव को अविनाशी कहने का तात्पर्य है-शस्त्र उसका छेदन-भेदन
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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