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________________ सम्यग्दर्शन स्वरूप | ७६ (८) बन्ध-निर्जरा का प्रतिपक्षी तत्त्व बन्ध है । अर्थात्-जिस प्रकार पुराने कर्म निर्जरा से झड़ जाते हैं, उसी प्रकार नये कर्मों का बन्ध भी होता जाता है । अतः आठवाँ वन्धतत्त्व प्रस्तुत किया गया। (E) मोक्ष-जीव का कर्मों से जैसे सम्बन्ध होता है, वैसे उनसे सर्वथा छुटकारा भी एक दिन हो सकता है। सम्पूर्ण कर्मा से सर्वथा मुक्ति को ही मोक्षतत्त्व कहते हैं। इसलिए नौवाँ तथा अन्तिम मोक्षतत्त्व माना गया। जीव प्रथम तत्व है और मोक्ष अन्तिम । इसका तात्पर्य यह है कि जीव मोक्ष प्राप्त कर सके, इसीलिए बीच के (मोक्ष में साधक-बाधक) सभी तत्त्वों का निरूपण हुआ है। - नौ तत्त्वों की विशेषता भारतीय दर्शनों में कुछ ज्ञयप्रधान हैं। वे मुख्यतया ज्ञय को ही चर्चा करते हैं-जैसे सांख्य, वेदान्त, नैयायिक और वैशेषिक । नैयायिक और वैशेषिक ने अपनी दृष्टि से जगत् का निरूपण करते हए, मूलद्रव्य कितने हैं. कैसे हैं, और अन्य कौन-से पदार्थ उनसे सम्बन्धित हैं ? इत्यादि बातों की जानकारी करने के लिए कुछ बातों का निरूपण किया है। सांख्यदर्शन प्रकृति, पुरुष आदि २५ तत्त्वों का ज्ञान करने पर जोर देता है। इसी प्रकार वेदान्तदर्शन भो जगत् के मूलभूत ब्रह्मतत्त्व की मीमांसा करके उसे जानने पर बल देता है । योगदर्शन और बौद्धदर्शन मुख्यतया हेय और उपादेय की ही चर्चा करते हैं। जैनदर्शन ने जैसे बन्ध, आस्रव, मोक्ष और निर्जरा, ये चार तत्त्व माने हैं, वैसे ही योगदर्शन ने हेय (दुःख), हेयहेतु (दुःख का कारण), हान (मोक्ष) और हानोपाय (मोक्ष का कारण), इस चतुव्यूहरूप तत्त्वों का, तथा बौद्धदर्शन ने दुःख, दुःख समुदय, निरोध और मार्ग इन चार आर्यसत्यों का निरूपण किया है। । परन्तु जिनप्रणोत दर्शन का स्पष्ट मन्तव्य है कि जगत् के मूलभूत तत्वों के जानने-मात्र से मुक्ति नहीं मिलती। उसके लिए महापुरुषों ने जो साधन (सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र) बताये हैं, उनका भी अनुसरण करना चाहिए। अर्थात् क्रिया का भी अवलम्बन लेना चाहिए। साथ ही यह भी ध्यातव्य है कि केवल क्रिया से भी मुक्ति नहीं मिलती, १ "पंचविंशतितत्त्वज्ञो यत्र कुत्राश्रमे रतः । जटी मुण्डी शिखी वाऽपि मुच्यते नात्र संशयः ॥"
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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