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________________ ७८ | जैन तत्त्वकलिका : पंचम कलिका आत्यन्तिक सुखप्राप्ति हो तो उसे मोक्ष को ही अपना ध्येय बनाना चाहिए। तत्पश्चात् यह प्रश्न उठता है कि 'यदि दुःख से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है, तो उसके उपाय क्या हैं ?' इस प्रश्न का विस्तृत समाधान देने के लिए उन्होंने दो निषेधात्मक और दो विधेयात्मक प्रश्न और उनके क्रमशः चार उत्तर प्रस्तुत किये हैं। जैसे-नये दुःखों के आने के कारण और उन्हें रोकने के उपाय क्या हैं ? तथा पुराने दुःखों के क्या कारण हैं और उन्हें नष्ट करने के उपाय क्या हैं ? इन चारों प्रश्नों के उत्तर में वीतराग मनीषियों ने आस्रव और संवर तथा बन्ध और निर्जरा तत्त्व प्रस्तुत किये हैं। इस प्रकार तीर्थंकर देवों ने नौ तत्त्वों का प्रतिपादन करके अध्यात्मजिज्ञासु के मन में उठने वाले सभी तात्त्विक प्रश्नों का समाधान किया है । नौ तत्त्वों का क्रम जैन शास्त्रों में नौ तत्त्वों का क्रम निम्न प्रकार से निर्धारित किया गया है-(१) जीव, (२) अजीव, (३) पुण्य, (४) पाप, (५) आस्रव, (६) संवर, (७) निर्जरा, (८) बन्ध प्रौर (९) मोक्ष । नौ तत्त्वों का यह क्रम नियत करने का प्रयोजन इस प्रकार है-- (१) जीव-सभी तत्त्वों को जानने-समझने वाला तथा संसार और मोक्ष विषयक सभी प्रवत्तियाँ करने वाला जीव ही है। जीव के बिना अजीव तत्त्व अथवा पुण्यादि तत्त्व सम्भव ही नहीं हो सकते । अतः सर्वप्रथम जीव तत्त्व का निर्देश किया गया है । (२) अजीव-जीव की गति, स्थिति, अवगाहन, वर्तना आदि सब अजीव तत्त्व की सहायता के विना असम्भव हैं, इसलिए दूसरे क्रम में 'अजीव' तत्व का निर्देश किया गया है। (३-४) पुण्य-पाप-जीव के सांसारिक सुख-दुःख के कारणभूत हैंअजीव के एक विभाग-पुद्गल-के कर्मरूप विकार। वे ही पुण्य और पाप हैं । अतः तीसरा और चौथा तत्त्व बताया गया-पुण्य और पाप । (५) आस्रव-पुण्य-पाप आस्रव के बिना नहीं हो सकते । अतः नये कर्मों के आगमनरूप आस्रव का निर्देश किया गया। (६) संवर-आस्रव का प्रतिरोधी तत्त्व संवर है, जो कर्मों को आने से रोकता है। अतः आस्रव के अनन्तर संवर का निर्देश किया गया है। (७) निर्जरा-जिस प्रकार नये कर्मों का आगमन संवर द्वारा रुकता है, उसी प्रकार पुराने कर्मों का क्षय निर्जरा से होता है । अतः सातवाँ निर्जरा तत्त्व बताया गया ।
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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