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________________ सम्यग्दर्शन-स्वरूप | ७७ (५) मिश्रण को रोकने एवं सावधानी रखने का उपाय क्या है ? (६) मिश्रित विजातीय पदार्थों के शोधन का उपाय तथा (७) शुद्ध पदार्थ का स्वरूप क्या है ? (२) एक रुग्ण व्यक्ति को रोग को सर्वथा निमूल करके पूर्ण स्वस्थ होना है, उसे भी इन ७ तथ्यों को जानकर उन पर श्रद्धा एवं रुचि करनी आवश्यक है। जैसे--(१) नीरोगी-स्वस्थ रहना मेरा मूल स्वभाव है। (२) परन्तु वर्तमान में मेरे स्वभाव के विरुद्ध कौन-सा रोग आ गया है ? (३) इस रोग का कारण, (४) रोग का निदान, (५) रोग को रोकने का उपाय-अप - थ्यसेवन का निषेध; (६) पुराने रोग के समूल नाश के लिए उपाय-औषध सेवन; एवं (७) नीरोगी अवस्था का स्वरूप । जिस प्रकार लौकिक कार्यों की सफलता के लिए ७ तथ्यों को जाननामानना और श्रद्धा करना आवश्यक है, उसी प्रकार आत्मा के अनन्तसुखरूप कार्य या अनन्त ज्ञानादि रूप पूर्णस्वरूप दशा-शुद्धदशा प्राप्त करने जैसे लोकोत्तर कार्य की सफलता के लिए भी पूर्वोक्त ७ तथ्यों (तत्त्वों) को जानना और उन पर श्रद्धा करना अनिवार्य है : (१) मैं जिसे पूर्ण आत्मिक सूख चाहिए, वह (जीव) क्या है ? (२) सम्पर्क में आने वाला विजातीय पदार्थ (अजीव) क्या है ? (३) दुःख और अशान्ति के आगमन (आश्रव) के कारण, (४) दु:ख और अशान्ति का रूप क्या है ? (बन्ध) (५) नये (आने वाले) दुःखों को रोकने (संवर) का उपाय, (६) पूर्व दुःखों को नष्ट करने का उपाय और (७) अनन्त सुखमय दशा का स्वरूप क्या है ? अध्यात्मजिज्ञासु के नौ प्रश्न : नौ तत्त्व तीर्थकर महर्षियों ने अध्यात्मजिज्ञासू के मन में स्वाभाविक रूप से उठने वाले ६ प्रश्नों के उत्तर के रूप में इन तत्त्वभूत ६ पदार्थों को प्रस्तुत किया है और इनका ज्ञान और इनके प्रति श्रद्धान आवश्यक बताया है। जैसे-सर्वप्रथम जिज्ञासु के मन में यह प्रश्न उपस्थित होता है-'मेरे आसपास जो जगत् फैला हुआ दिखाई देता है, वह वास्तव में क्या है ?' इसी के उत्तर में आप्तपुरुषों ने 'जीव' और 'अजीव' ये दो तत्त्व प्रस्तुत किये । 'सुखदुःख के अनुभव करने के कारण क्या-क्या हैं ?' इस प्रश्न के समाधान के रूप में उन्होंने 'पुण्य' और 'पाप' नामक दो तत्त्व प्रस्तुत किये। क्या दुःख से सर्वथा मुक्ति मिलना सम्भव है ?' इस प्रश्न के उत्तर के रूप में उन्होंने 'मोक्ष' तत्त्व प्रस्तुत किया। क्योंकि मनुष्य की सत्प्रवत्तियों उद्देश्य दुःखनिवत्ति और
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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