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________________ ७४ | जैन तत्त्वकलिका : पंचम कलिका भगवान् द्वारा बताये गए अमुक-अमुक पदार्थ तत्त्वभूत हैं, तो उसकी यह श्रद्धा आत्मलक्ष्यी नहीं है; अर्थात् वह जीवादि पदार्थों के लक्षण जानते हए श्रद्धाशील नहीं है कि भगवान् ने जैसा-जैसा जिन तत्त्वभूत पदार्थों का स्वरूप बताया है. वे वैसे हो स्वभाव के हैं। जैसे-आत्मा (जीव) के स्वभाव ज्ञान-दर्शन हैं, ये उसके निजी गुण हैं, आत्मा का स्वरूप इस प्रकार का है, अजीव या पुद्गलों के स्वभाव एवं गुण भिन्न हैं। वे परभाव हैं। इन तत्त्वभूत पदार्थों में से अमुक-अमुक पदार्थ भेरे आत्महित में बाधक हैं या साधक हैं । ये तत्त्वभूत पदार्थ हेय हैं. ये ज्ञय हैं, और ये उपादेय हैं। इस प्रकार स्वभाव के प्रति आत्मलक्ष्यी श्रद्धा के बिना कोरी श्रद्धा कृतकार्य नहीं हो सकती। अतः जब तत्त्व और उसके स्वभाव के निश्चय के प्रति आत्म-लक्ष्यी श्रद्धान होगा, सभी सम्यग्दर्शन होगा, और वही श्रुतधर्म कहलाएगा। सम्यग्दर्शन में स्वानुभूति आवश्यक देव, गुरु, धर्म, शास्त्र और तत्त्वभूत पदार्थ आदि के प्रति श्रद्धानरूप जो व्यवहार सम्यग्दर्शन का लक्षण है, वह भी तभी सार्थक और सफल हो सकता है, जब आत्मा के प्रति श्रद्धा या स्वानुभूति हो, तथा आत्मा के विषय में दृढ़ प्रतीति, रुचि या विश्वास हो। जब श्रद्धा को आत्मा से अभिन्न बताया गया है, तब केवल देव, गुरु, शास्त्र या तत्त्वभूत पदार्थों के प्रति श्रद्धा से काम नहीं चल सकता। इसीलिए पंचाध्यायी में कहा गया है-"यदि श्रद्धा, प्रतीति, रुचि आदि गुण स्वानुभूति सहित हैं तभी वे सम्यग्दर्शन के लक्षण (गुण) हो सकते हैं किन्तु स्वानुभूति (स्वरूपानुपलब्धि) के बिना श्रद्धा आदि गुण सम्यग्दर्शन के लक्षण नहीं, लक्षणाभास ही हैं । स्वानुभूति (आत्मा के प्रति श्रद्धा-प्रतीति) के बिना जो श्रद्धा केवल शास्त्रों या गुरु आदि के उपदेश के श्रवण मात्र से होती है, वह तत्त्वार्थ के अनुकूल होते हुए भी वास्तव में शुद्ध आत्मा की उपलब्धि से रहित होने से शुद्ध श्रद्धा नहीं कहला सकती। वस्तुतः देखा जाए तो सबसे बड़ी और मूल श्रद्धा आत्मा पर श्रद्धा १ स्वानुभूतिसनाथाश्चेत् सन्ति श्रद्धादयो गुणाः। स्वानुभूति बिनाऽऽभासा नाऽर्थाच्छद्धादयो गुणा: ।। बिना स्वानुभूति तु या श्रद्धा श्रुतमात्रतः । तत्त्वार्थानुगताऽप्यर्थाच्छ्रद्धा नानुपलब्धितः ।। --पंचाध्यायी (उत्तरार्ध), श्लो. ४१५, ४२१
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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