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________________ धर्म के विविध स्वरूप | ३५ नगरधम को तिलांजलि देकर अपनी आय बढ़ाने के लिए ऐसा नियम बना दे कि प्रत्येक नागरिक को प्रतिदिन शराब पीना अनिवार्य होगा। ऐसी स्थिति में नागरिकों का धर्म अथवा कर्तव्य क्या होगा ? यही होगा कि वह सरकार के इस अनीतिमय नियम का अहिंसात्मक उपायों से विरोध करे। उसका इस प्रकार का विरोध करना भी नगरधर्म से संगत माना जाएगा। ___नगरजनों द्वारा वर्तमान नगरधर्म का यथार्थ पालन न होने के कारण ग्रामीण लोग भी धूम्रपान, शराब, मांसाहार, नाच-गान, विलासिता, फैशन आदि में अपने समय, शक्ति और धन का दुर्व्यय करना सीख रहे हैं। अतः नगर में रहने वाले व्यापारी, विद्यार्थी, शिक्षक, वकील, डॉक्टर, सरकारी कर्मचारी, अधिकारी आदि सभी पूर्वोक्त नगरधर्म का पालन करें तो राष्ट्र का सर्वांगीण हित होने की पूरी सम्भावना है। (३) राष्ट्रधर्म सामान्यतया ग्रामों और नगरों का समूह राष्ट्र कहलाता है। राष्ट्र शब्द की व्याख्या आचार्यों तथा. मनीषी विद्वानों ने इस प्रकार की है जो प्राकृतिक (भौगोलिक) सीमा से सीमित हो, प्रायः एक ही जाति अथवा एक ही सभ्यता या संस्कृति के लोग जहाँ रहते हों, उस देश को राष्ट्र कहते हैं। देश राष्ट्र शब्द का पर्यायवाचक है।। जिस कार्य से राष्ट्र सुव्यवस्थित होता है, अर्थात्-राष्ट्र की बिगड़ी हई व्यवस्था ठीक होती है, मानव समाज अपने धर्म का ठीक-ठीक पालन करना सीखता है, राष्ट्र की सम्पत्ति तथा आर्थिक-राजनतिक उन्नति का संरक्षण होता है, जिस कार्य से राष्ट्र की प्रतिष्ठा, सुख-शान्ति और शक्ति बढ़ती है, उसे राष्ट्रधर्म कहते हैं। राष्ट्र के निवासी द्वारा राष्ट्रहित के विरुद्ध कोई काम न करना तथा राष्ट्र-द्रोह-सम्बन्धी कोई भी कार्य न करना, राष्ट्र बदनाम हो, राष्ट्रीय चरित्र दूषित होता हो, राष्ट्र पर अत्याचार हो रहा हो, आदि ऐसे कार्यों में सहयोग न देना भी राष्ट्रधर्म का पालन है। दूरदर्शी राष्ट्रस्थविर अपने राष्ट्र की परिस्थिति देखकर विदेशों से आयात-निर्यात के जो नियम बनाते हैं, अथवा परिस्थितिवश या आर्थिक लाभ न होता देख कई विदेशों से माल मंगाने पर रोक लगाते हैं, राज्य संचालन अथवा राष्ट्र-संचालन के लिए अमुक-अमुक न्यायोचित राजकीय कर निर्धारित करते हैं, राष्ट्रहित के लिए जनता के बहुमत से कानून और दण्ड व्यवस्था बनाते हैं, भाषा, शिक्षा, न्याय, सुरक्षा आदि से सम्बन्धित
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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