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________________ २६ | जैन तत्त्वकलिका : तृतीय कलिका धर्म समझा जाता है, वही देशान्तर या कालान्तर में प्रायः अधर्म हो जाता है। जैनशास्त्रों की भाषा में कहें तो एक काल में जो उत्सर्ग धर्म था, परिस्थितिवश दूसरे काल में उसके बदले अपवाद धर्म भी हो जाता है। ___ इसी प्रकार धर्म-साधकों के मनोभाव भी सबके एक-से नहीं होते । यद्यपि लक्ष्य सभी साधकों का एक ही होता है, महाव्रतों या अणवतों की प्रतिज्ञा का रूप भी समान होता है, तथापि साधकों के मनोभावों में अन्तर होने से अथवा बाह्य साधनों (पदार्थी) में अन्तर होने से धर्म पालन के रूप में भी भिन्नता आ जाती है। उदाहरणार्थ-एक साधु तपस्या में भारी पुरुषार्थ करता है, उसे तपस्या में रुचि और श्रद्धा है, परन्तु दूसरा साधु शरीर से दुर्बल है, तपस्या में उसको रुचि कम है, वह तपस्या को आचरणीय धर्म समझते हुए भी उसमें इतना पुरुषार्थ नहीं कर पाता। वह बौद्धिक दृष्टि से समर्थ है, शास्त्रीय अध्ययन और ज्ञानार्जन करने में सक्षम है, उसकी रुचि और श्रद्धा भी है। अतः वह ज्ञानार्जन में पुरुषार्थ करता है । इसी प्रकार एक गृहस्थ धन-सम्पन्न है, किन्तु दान-धर्म की रुचि और भावना कम होने से प्रेरणा करने पर बहुत ही कम दान देता है, दूसरा सद्गृहस्थे धन-सम्पन्न होने के साथ-साथ उदार भावना वाला है वह अपनी अन्तःस्फुरणा से लाखों रुपयों का दान देता है। तीसरा सद्गृहस्थ सामान्य स्थिति का है, दानधर्म की भावना होते हुए भी वह बहुत ही कम दान दे पाता है। जिसकी स्थिति अत्यन्त सामान्य हो, वह क्षुधातुर को रोटी का टुकड़ा देकर अथवा तृषातुर को शीतल जल पिलाकर भी दानधर्म का पालन करता है। इसी प्रकार एक बालक बहुत ही छोटा-सा तप करता है. जबकि युवक या प्रौढ़ मनुष्य बड़ी तपस्या करता है। दोनों हो तपोधर्म का पालन करते हैं; किन्तु दोनों के तपोधर्म के रूप में अन्तर अवश्य है, जो उनके मनोभावों के अनुसार स्वाभाविक है । भाव की अपेक्षा भी धर्म के विविध प्रकार दिखाई देते हैं। इस प्रकार द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से धर्म-शुद्ध धर्म एक होते हुए भी उसके रूपों में अन्तर हो जाता है । परन्तु धर्मों के रूपों में १ 'यस्मिन् देशे काले च यो धर्मो भवति, स एव देशान्तरे कालान्तरे च अधर्मो भवति ।'
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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