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________________ धर्म के विविध स्वरूप | १७ यह तो निश्चित है ही कि स्वाधीन और सच्चा सुख धर्म से ही प्राप्त होता है । ऐसे सच्चे सुख के भागी, धर्म को जीवन में ओतप्रोत कर देने वाले पूर्ण धर्मिष्ठ वीतरागी मुनि ही हो सकते हैं, अथवा वीतराग मार्ग पर चलने वाले धर्मिष्ठ साधु श्रावकवर्ग हो सकते हैं । एक प्राचीन आचार्य ने कहा है- 'रत्नों के विमान में निवास करने वाले, देवांगनाओं के साथ विलास करने वाले, कई सागरोपम की आयु के धारक देवता भी सुखी नहीं है। छह खण्ड पृथ्वी पर राज्य करने वाले, हजारों रानियों के साथ विषय-विलास करने वाले और देवों द्वारा सेवित चक्रवर्ती राजा भी सुखी नहीं है और न ही धनाढ्य सेठ या सेनापति ही सुख हैं । तात्पर्य यह है कि इस संसार के उत्कृष्ट से उत्कृष्ट वैभव सम्पदा के धनी व्यक्ति भी सुख के पात्र नहीं हैं। अगर सच्चे माने में कोई सुखी है, तो धर्मधुरन्धर वीतरागी साधु ही सुखी हैं । " धर्म की उत्पत्ति यह सहज जिज्ञासा हो सकती है कि धर्म की उत्पत्ति का क्या कारण है ? मानव जाति के समक्ष ऐसी कौन-सी समस्याएँ या कठिनाइयां आयीं, जिन्हें हल करने के लिए उसके हृदय में धर्म की प्रबल भावनाएँ जागृत हुई ? आदिम युग के प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव के समय का अध्ययन करने से यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि अकर्मभूमि से कर्मभूमि में जब से मानव जाति ने प्रवेश किया, तब से सारी परिस्थितियाँ बदल गई थीं, राज्य व्यवस्था, समाज व्यवस्था एवं संघ व्यवस्था में सर्वत्र विविध क्षेत्रों प्रत्येक प्रवृत्ति के साथ युगादि तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने धर्म का प्रवेश कराया । इसी शुभ उद्द ेश्य से धर्म का श्रीगणेश हुआ । इसी परम्परा के अनुसार आगे के तीर्थंकरों ने भी प्रत्येक प्रवृत्ति के साथ 'धर्म' पालन की प्रेरणा दी। शास्त्र में यत्र तत्र 'धम्मो कहिओ' ( धर्म का प्रतिपादन किया) वाक्य इसी उद्देश्य का सूचक है । ह्यूम, कांट, हेगल, जेन ऑस्टिन, डीवी आदि पाश्चात्य दार्शनिकों ने धर्म की उत्पत्ति का आधार मानव-जीवन में आने वाले भय, आशा, प्रलोभन, नैतिकता (Morality) अथवा मानव की असहाय अवस्था आदि बताया १ नवि सुही देवता देवलोए, न वि सुही पुढवीपइ राया । नव सुही सेट्ठि सेणावइ य, एगंतसुही मुणी वीयरागी ॥
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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