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________________ ....... "धर्म के विविध स्वरूप | ७ इस दोहरी मनोवत्ति ने जनमानस में धार्मिक होने का झठा दम्भ भर दिया, किन्तु धर्म का शुद्ध रूप उनके जीवन में नहीं उतर सका । धार्मिक का मानदण्ड भी इससे गलत हो गया । धर्म, जो आत्मा में प्रतिष्ठित होना चाहिए था वह नहीं हो सका । वस्तुतः जो आत्मा को देखता है, आत्मा की आवाज सुनता है, और आत्मा को वाणी बोलता है, वही स्वतः स्फुरित चेतना से उत्साह और श्रद्धापूर्वक शुद्ध धर्माचरण कर पाता है। तथा अपने सम्पर्क में आने वाले आत्माओं के प्रति आत्मवत् व्यवहार भी कर पाता है। यही शुद्ध धर्माचरण का प्रमुख सूत्र है । शुद्ध धर्म केवल क्रियाकाण्ड की वस्तु नहीं, आचरण की वस्तु है, यह भी इस सूत्र में से प्रतिफलित होता है।' धर्म के दो रूप : मौलिक और सरल सुविधावादी लोगों के जीवन में धर्माचरण के झूठे सन्तोष ने धर्म का मौलिक रूप भुला दिया । धर्म का मौलिक रूप है-इन्द्रियों और मन पर संयम, समता का जीवन में अभ्यास, भय-प्रलोभनादि दोषों से रहित होकर अहिंसादि का विशुद्ध आचरण और शरीर तथा शरीर से सम्बन्धित वस्तुओं तथा व्यक्तियों के प्रति विविध महत्त्वाकांक्षाओं का निरोध और आत्मशद्धि करने के लिए ज्ञानपूर्वक बाह्यभ्यन्तर तपश्चरण । ___ किन्तु पुण्यवादी लोगों ने एवं तथाकथित धर्मप्रवक्ताओं ने अनुयायियों को संख्या वद्धि के लोभ में आकर धर्म के मौलिक रूप से हटकर उसे सरल रूप दे दिया। भगवान् को भक्ति, नाम-जप, कुछ धार्मिक क्रियाएँ, आदि में उन्होंने धर्म को सीमित कर दिया । फलतः धर्माकांक्षी लोगों को पारलौकिक जीवन के अभ्युदय के लिए आश्वासन मिला, परन्तु वर्तमान जीवन में आचार-शुद्धि, व्यवहार-शुद्धि तथा इन्द्रिय-मनसंमय के लिए किये जाने वाले तीव्र अध्यवसाय और पुरुषार्थ की अपेक्षा नहीं समझी गई। धर्म के इस सरल और सुविधावादी रूप की धारणा ने तथाकथित धार्मिकों की संख्या तो बढ़ा दी, लेकिन धर्मचेतना क्षीण कर दी। फलतः संयम-प्रधान धर्म का आसन उपासनाप्रधान धर्म ने ले लिया । धर्म की चेतना और शक्ति क्षीण हो गई। इसीलिए भगवान महावीर ने क्रियाकाण्डों या कोरी उपासना में धर्म का मिथ्या आश्वासन मानने वालों को चेतावनी के स्वर में कहा १ धम्मो सुद्धस्स चिट्ठइ -उत्तराध्ययन अ. ३, गा. १२
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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